अंदर जाते समय केनेडी उनसे अनौपचारिक रूप से बात करते रहे। बातचीत में उन्हें वही दर्जा दे रहे थे जो शिक्षक और दार्शनिक को दिया जाता है। उन्होंने बूंदा-बांदी से हुई असुविधा पर खेद व्यक्त किया। स्वागत और खेद के जवाब में राधाकृष्णन ने बस इतना कहा, ‘घटनाएं सदैव अपने नियंत्रण में नहीं होती हैं, पर घटनाओं के प्रति अपनी प्रवृत्ति को हम नियंत्रित कर सकते हैं।’ उस दौरान चीनी आक्रमण से भारत की गुटनिरपेक्ष नीति खतरे में थी। गुटनिरपेक्षता बचाना और सहयोग मांगना जटिल काम था, लेकिन राधाकृष्णन ने बात रख दी।
बाद में केनेडी ने अमेरिकी सुरक्षा परिषद से कहा, ‘राधाकृष्णन ने मुझसे किसी प्रकार की आर्थिक और सैनिक सहायता नहीं मांगी लेकिन जिन तथ्यों को उन्होंने हमारे सामने रखा है उनसे साफ है कि भारत को यदि आर्थिक और सैनिक सहयोग नहीं दिया गया तो अमेरिका को भविष्य में शर्मिंदा होना पड़ेगा।’ यह था राधाकृष्णन के व्यक्तित्व और वक्तृत्व का कमाल जिसने एशियाई शक्ति संतुलन के लिए अमेरिकी मीडिया से सब कुछ कहलवाया, खुद कुछ भी नहीं कहा और गुटनिरपेक्षता का बचाव भी किया। सच है, यदि व्यक्तित्व कुर्सी के योग्य हो तो देश की गरिमा और सम्मान में बढ़ोतरी के मौके निकल ही आते हैं।
संकलन : हरिप्रसाद राय