अब अंग्रेजों ने इन दोनों पर नया मुकदमा कर दिया और जमानत के लिए 15-15 हजार रुपये मांगे। गणेश जी ने मुचलका नहीं भरा, जेल गए। 1922 की मई में जब वह बाहर आए तो बेहद कमजोर हो चुके थे। लेकिन फिर फतेहपुर की जिला कॉन्फ्रेंस में उन्होंने जो भाषण दिया, उस पर उन्हें फिर साल भर के लिए जेल की सजा सुना दी गई। उनके स्वास्थ्य को देख कई मित्रों ने सलाह दी कि माफी मांग लो। विद्यार्थी जी ने इन मित्रों को दो टूक जवाब दे दिया। फिर यह सोच कर कि ऐसी सलाह किसी न किसी रूप में घर तक भी पहुंचेगी, उन्होंने पत्नी को संदेश भिजवाया कि चाहे कोई कुछ भी कहे, वह अंग्रेजों से माफी नहीं मांगेंगे।
जेल जाने से पहले विद्यार्थी जी को पत्नी का खत मिला। पत्नी ने लिखा था, ‘मैं कर्त्तव्य करते हुए तुम्हारी मृत्यु भी पसंद करूंगी।’ उत्तर में विद्यार्थी जी ने लिखा, ‘माफी मांगने से अच्छा है कि मौत हो जाए। तुम विश्वास रखो, मैं बेइज्जती का काम नहीं करूंगा। तुमने जो साहस दिलाया, उससे मेरे जी को बहुत बल मिला। ईश्वर तुम्हारे मन को दृढ़ रखे। तुम दृढ़ रहोगी तो मेरा मन कभी न डिगेगा।’ यह पत्र भेजने के बाद विद्यार्थी जी माखनलाल जी के घर चले गए और होली के बाद की तीज पर उन्होंने खुद को पुलिस के हवाले कर दिया। इतिहास गवाह है कि विद्यार्थी जी ने ढेरों कष्ट भोगे, मगर अंग्रेजों से माफी कभी नहीं मांगी।– संकलन: पावनी सिंह