त्रिवेणी संगम में करें मां भद्रकाली के दर्शन, 3000 साल पुराने माता के इस मंदिर में होते हैं हर रोज चमत्कार

देवी भागवत पुराण में 108 तो तंत्र चूड़ामणि में शक्ति पीठों की संख्या 52 बताई गई लेकिन सामान्यत: 51 शक्तिपीठ माने जाते हैं। जहां जहां माता सती के अंग गिरे थे, उन उन स्थानों को शक्तिपीठ माना जाता है। आज हम आपको कन्याकुमारी शक्तिपीठ के बारे में बताने जा रहे हैं, जो तमिलनाडु के कन्याकुमारी केप पर स्थित है, देवी कन्याकुमारी का प्रमुख मंदिर है। देवी को यहां कुमारी अम्मन के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि देवी सती की रीढ़ की हड्डी यहीं गिरी थी। यहां भगवती देवी की पूजा की जाती है, जिन्हें दुनियाभर में कन्या देवी, कन्या कुमारी और भद्रकाली के नामों से भी जाना जाता है।

3000 साल पुराना है मंदिर

मजबूत पत्थर की दीवारों से घिरे कन्याकुमारी शक्तिपीठ के मंदिर का इतिहास 3,000 साल से भी पुराना बताया जाता है। मंदिर परिसर में कई और मंदिर भी हैं, जो भगवान सूर्य देव, भगवान गणेश, भगवान अयप्पा, देवी बाला सुंदरी और देवी विजया सुंदरी को समर्पित हैं। मंदिर का मुख्य प्रवेश उत्तरी द्वार से होता है। वहीं पूर्वी द्वार ज्यादातर बंद ही रहता है, वह केवल विशेष अवसरों पर ही खुलता है।

यहां का प्राकृतिक सौंदर्य भी अद्भुत

कन्याकुमारी शक्तिपीठ अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए काफी प्रसिद्ध है, मंदिर की बनावट आपको मंत्रमुग्ध कर देगी। साथ ही यहां तीन समुद्रों का संगल भी होता है, मंदिर के पूर्व में बंगाल की खाड़ी तो मंदिर के दक्षिण में हिंद महासागर है। वहीं पश्चिम में अरब सागर आकर मिलता है, जो आपको एक अलग से शांति देकर जाएगा। साथ ही समुद्र में होने वाले सूर्योदय और सूर्यास्त को भी आप मंदिर से देख सकते हैं। समुद्र के इस संगम के कारण यह स्थान एक प्रमुख तीर्थ स्थल भी है। यहां पर कन्या कुमारी मंदिर के साथ विवेकानंद स्मारक भी है, जहां पर कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 45 घंटे तक साधना की थी।

देवी पार्वती ने लिया कन्या देवी के रूप में जन्म

पौराणिक कथा के अनुसार, बाणासुर नामक के राक्षस को शिवजी का वरदान प्राप्त था की उसका वध केवल एक कुंवारी कन्या ही कर सकती है। वरदान पाकर एक बार बाणासुर ने सभी देवताओं को कैद भी लिया था। इसलिए देवताओं ने मां भगवती से प्रार्थना की तो देवी ने कुंवारी कन्या का रूप धारण कर लिया। प्राचीन काल के राजा भरत के यहां माता पार्वती ने कन्या के रूप में जन्म लिया। जब वह कन्या बड़ी हुई तो, वह शिवजी के अलावा किसी अन्य व्यक्ति से विवाह नहीं करना चाहती थी। राजा भरत ने अपनी पुत्री को रहने के लिए अपने राज्य के दक्षिण में स्थान दिया। यहां पर कन्या रूपी देवी भगवती भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या करने लगीं। एक दिन बाणासुर घूमता हुआ, उस कन्या के पास पहुंच गया।

माता ने किया बाणासुर राक्षस का अंत

कन्या की सुंदरता पर मुग्ध होकर बाणासुर ने उसके समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा। तब उस कन्या ने राक्षस से युद्ध की शर्त रखी और कहा की यदि वह युद्ध में विजयी हो गया तो वह उससे विवाह कर लेगी। इसके बाद कन्या और राक्षस बाणासुर के बीच घमासान युद्ध हुआ और इस युद्ध में बाणासुर का देवी भगवती ने अंत कर दिया। बाणासुर के अंत के बाद बाद कन्या ने कुंवारी ही रहने का फैसला ले लिया। नारदजी और भगवान परशुराम ने देवी से कलयुग के अंत तक धरती पर रहने का अनुरोध किया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। इसलिए परशुराम ने समुद्र के किनारे इस मंदिर का निर्माण किया और देवी कन्याकुमारी की मूर्ति स्थापित की।

मंदिर को लेकर मान्यता

मंदिर के बारे में एक और मान्यता यह है कि कन्या और शिव से विवाह के लिए जितना भी अनाज एकत्र किया था, वह बाद में कंकड़ पत्थर बन गया। इस पत्थर को हम आज भी कन्याकुमारी में देख और खरीद सकते हैं। आपको कन्याकुमारी के समुद्र तट की रेत में दाल और चावल के आकार के कंकड़ भी देखे जा सकते हैं।

मंदिर का रहस्य

कन्याकुमारी शक्तिपीठ में कुमारी अम्मन की मूर्ति काले पत्थर की बनी हुई है और मंदिर के अंदर 11 तीर्थ स्थल भी हैं। अंदर के परिसर में तीन गर्भ गृह गलियारे और मुख्य नवरात्रि मंडप है। लेकिन इन सभी को समझ पाना या ध्यान से देख पाना इतना आसान नहीं है, क्योंकि मंदिर के अंदर की बनावट भूल भुलैया जैसी लगती है। परिसर में मूल-गंगठीर्थम नामक एक कुआं है। बताया जाता है कि वर्तमान मंदिर का निर्माण 8वीं शताब्दी में पांड्या सम्राटों द्वारा किया गया था।