दीपावली पर करें यह उपाय, तभी हल होगी आर्थिक समस्या

(डॉ. प्रणव पण्ड्या)
त्योहार और संस्कार संस्कृति के प्राण कहे जा सकते हैं। संस्कारों द्वारा मानव जीवन को श्रेष्ट बनाने वाले उत्तम विचारों को मनुष्य तक पहुंचाया जाता है तथा त्योहार देश और जाति की सामूहिक समस्याओं को सुलझाने का माध्यम बनते हैं। त्योहारों द्वारा यह संदेश मिलता है कि हम सभी समाज रूपी शरीर के अंग हैं। अपने को उससे पृथक मानकर व्यवहार करना अपने ही स्वार्थों का हनन करना है, इसलिए हमें चाहिए कि हम समाज व देश के हितों का ध्यान रखें। उसके अनुरूप व्यवहार करें, उसे ऊंचा उठाने के लिए निष्ठा के साथ प्रयत्न करें। एक श्रेष्ठ नागरिक के कर्त्तव्यों का पालन करें, इसी में अपना व समाज का लाभ है।

समस्या चाहें व्यक्तिगत हो या सामाजिक, दीपावली सोचने-विचारने और उसकी प्रगति के लिए नवीन योजना बनाने का त्योहार है। आर्थिक समस्या को सुलझाए बिना हम सुख और समृद्धि के मार्ग पर अग्रसर नहीं हो सकते। अपने पुरुषार्थ द्वारा कमाई गई धन-संपत्ति का क्या उचित उपयोग होना चाहिए? पिछले वर्ष में आई आर्थिक कठिनाइयों के क्या कारण थे और उन्हें दूर करने के लिए हमें क्या करना चाहिए? दीपावली पर्व उसी के बारे में सोचने के लिए प्रेरणा देता है।

वस्तुतः विपत्ति काल के लिए धन संचय की योजना बनाना भी इस महान पर्व के आने का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है। दीपावली एक ऐसा पर्व है, जिसमें दो ऐसे देवी-देवताओं का पूजन किया जाता है, जिनका सीधे रूप से इस पूजन के साथ कोई संबंध नहीं जैसा कि प्रतीत होता है; पर लक्ष्मी और गणेश का साथ-साथ पूजन करने का यही अर्थ है कि लक्ष्मी जी के आवाहन करने के साथ-साथ विचारशीलता का समावेश होना चाहिए, अर्थात् धन कमाने के साथ ही उसका विवेक सम्मत उचित उपयोग होना चाहिए। सामाजिक दृष्टि से भी यह त्योहार महत्त्वपूर्ण है। कई दिन पूर्व लोग अपने घर-दुकान एवं प्रतिष्ठान आदि को स्वच्छ करने में जुट जाते हैं, जिससे स्वच्छता का वातावरण विनिर्मित होता है। स्वच्छता से ही मन प्रसन्न एवं प्रफुल्लित रहता है, जिसका व्यक्ति के स्वास्थ्य पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ता है।

दिपावली पर्व हमें कर्मठ एवं जागरूक बने रहने की प्रेरणा देता है। जागरूकता का अभिप्राय पुरुषार्थ पर आधारित रहना है और इस पुरुषार्थ के द्वारा ही लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। हमारे नीति-ग्रंथों में कहा गया है कि उद्योगिनां पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मीः। स्वामी महावीर, स्वामी विवेकानन्द, स्वामी रामतीर्थ ने अपने पवित्र शरीर को इसी दिन त्याग कर निर्वाण को प्राप्त किया था। इन महान आत्माओं ने तिल-तिल जलकर मनुष्य को प्रकाश प्रदान किया। वह कभी बुझने न पाए इसलिए उनकी स्मृति में उनके अनुयायी अपने घरों में दीपक जलाते हैं। इस प्रकार हम जिस किसी भी दृष्टि से देखें, यह पर्व अपने आप में एक अहमियत रखता है।