दूध पर शुरू हुई राधाकृष्णन और महात्मा गांधी की बहस, बनी पहली और अंतिम मुलाकात

1915 की घटना है। मद्रास के जॉर्जटाउन की थांबू चेट्टी स्ट्रीट स्थित जी.ए. नटेसन के घर पर महात्मा गांधी ठहरे हुए थे। नटेसन स्वतंत्रता संग्राम सेनानी होने के साथ ही एक पत्रकार और लेखक भी थे। उस समय सर्वपल्ली राधाकृष्णन मद्रास प्रेजिडेंसी कॉलेज में एक शिक्षक के तौर पर ख्याति पा चुके थे। उनसे नटेसन सुन चुके थे कि वह गांधी, टैगोर और विवेकानंद से प्रभावित हैं। इसलिए उन्होंने राधाकृष्णन को गांधीजी से मिलाने के लिए अपने घर बुलाया। थोड़ी औपचारिकता के बाद दोनों की बातचीत शुरू हुई।

गांधीजी ने राधाकृष्णन से कहा कि हमें दूध नहीं पीना चाहिए। ‘क्यों?’, राधाकृष्णन ने पूछा। ‘क्योंकि यह मांस से उत्पन्न पेय पदार्थ है।’ राधाकृष्णन ने प्रतिवाद किया कि फिर तो मां का दूध पीने वाले सभी मनुष्य नरभक्षी हैं। गांधीजी ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘जंगल में हजारों जीव पैदा होते हैं और जीवित रहते हैं।’ राधाकृष्णन ने कहा, ‘और हजारों मर जाते हैं।’ गांधीजी ने पूछा, आपको कैसे पता? राधाकृष्णन ने कहा, ‘आपको कैसे पता ?’ कड़वाहट से बचाव के लिए नटेसन बीच में पड़ते हुए बोले कि राधाकृष्णन लॉजिक के शिक्षक हैं।

दोनों की बात और मुलाकात असहज रही लेकिन राधाकृष्णन के मन में गांधीजी के प्रति कोई मलाल नहीं धा। वह गांधीजी को पहले की तरह महामानव कहते रहे। बीएचयू के सिल्वर जुबली समारोह में उन्होंने गवर्नर और वायसराय की जगह गांधीजी को मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया। ऑक्सफर्ड में उन्हें कोट किया। ‘दि भागवत गीता’ नाम की अपनी पुस्तक को वह गांधीजी को समर्पित करना चाहते थे। आखिरी समय में उन्होंने लिखना छोड़ दिया था लेकिन गांधी पर संपादित एक पुस्तक की भूमिका लिखने का प्रस्ताव आया तो कलम पकड़ी। हमारे जीवन में वैचारिक मतभेद और बहस संबंधों को कटु बना देते हैं, पर गांधी-राधाकृष्णन के बीच की पहली और आखिरी बहस की इस असहजता में कटुता के लिए कोई स्थान नहीं था।– संकलन : हरिप्रसाद राय