दादा-दादी, माता-पिता सभी परेशान हो गए। बच्चा जोर-जोर से चिल्ला रहा था: तुम लोगों के इतने बड़े-बड़े दाँत हैं, तुम लोग मुझे खा जाओगे, मैं तुम्हारे पास नहीं आऊँगा। सभी हतप्रभ थे, कुछ समझ नहीं पा रहे थे। मैं जप में बैठा था। करीब आधे घण्टे से यह सिलसिला चल रहा था।
आखिर में थक हारकर सब लोग मुझे पुकारने लगे: शंकर देखो न मुन्ने को क्या हो गया है। हम लोगों से डर रहा है। कहता है हमारे सिर पर सींग है, हमारे बड़े-बड़े दाँत हैं, हम उसे खा जाएँगे।
सभी लोगों का ध्यान दूसरी ओर देख बच्चा चुपचाप जाकर एक मेज के नीचे दुबककर बैठ गया। उसकी आँखों में आँसू भरे थे। बच्चे को क्या कष्ट है यही अज्ञात था। मैंने सोचा सबसे पहले उसका भय दूर करना चाहिए।
मैंने आँखें बंद कर गायत्री का ध्यान किया। एक हल्की सी आवाज सुनाई पड़ी: आचमनी का जल बच्चे को पिला। मैं आचमनी का जल लेकर उसके पास गया। मुझे पास देखकर बच्चा जल्दी से आकर मुझसे चिपक गया। गोद में उठाकर दुलारा तो देखा उसके मुख पर एक पूरी आश्वस्ति का भाव था। वह मेरे पास आकर अपने आपको सुरक्षित महसूस कर रहा था।
ध्यान में मिले निर्देश के अनुसार मैंने आचमनी का जल पिलाया। बच्चा गोद में ही सो गया। इस घटना के बाद मेरे प्रति परिवार का मनोभाव बदल गया। फिर उन्होंने भी माँसाहार त्याग दिया और दीक्षा लेकर गायत्री परिवार से जुड़ गए।
माँसाहार आसुरी प्रवृत्ति है यह मैंने पुस्तकों में तो पढ़ा था, पर सरल स्वभाव शिशु के स्वच्छ हृदय में यह बात इस प्रकार मूर्त्त रूप में प्रकट हुई कि मेरे परिवार का वातावरण ही बदल दिया। इसे मैं गायत्री उपासना का ही प्रतिफल मानता हूँ।
जयशंकर रावत आसनसोल (प.बंगाल)
अदभुत, आश्चर्यजनक किन्तु सत्य पुस्तक से