उनके उत्तराधिकारी के तौर पर दो लोगों के नाम की काफी चर्चा है। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती, द्वारका और ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य के उत्तराधिकारी थे। द्वारका शारदा पीठ के उत्तराधिकारी के रूप में दांडी स्वामी सदानंद सरस्वती जी महाराज का नाम सबसे आगे है। वहीं दांडी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज का नाम ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य के रूप में चर्चित है। दोनों शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के मुख्य शिष्य माने जाते हैं।
ऐसा माना जाता है कि शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने उनके नाम पारंपरिक तरीके से वसीयत में रखे हैं।
कब स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी शंकराचार्य बने थे?
स्वामी स्वरूपानंद को 1950 में दांडी संन्यासी बनाया गया था। उन्होंने ज्योतिर्मठ पीठ के ब्रह्मलिन शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती से दंड संन्यास की दीक्षा ली और स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के नाम से जाने गए। 1981 में उन्हें शंकराचार्य की उपाधि मिली। वे द्वारका पीठ के शंकराचार्य होने के साथ-साथ उत्तराखंड के जोशीमठ के ज्योतिषपीठ भी थे। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद उन्हें ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य की उपाधि मिली। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की मृत्यु के बाद अब उनके उत्तराधिकारी की चर्चा तेज हो गई है।
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती 99 वर्ष के थे। उन्हें मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर स्थित परमहंसी गंगा आश्रम में सोमवार को भू समाधि दी जाएगी.