धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक दृष्टि से भी चरणामृत है फायदेमंद, ऐसे बना था पहली बार

किसी भी मंदिर में जाइए या पूजा का आयोजन कीजिए तो प्रसाद के रूप में सबसे पहले चरणामृत मिलता है। चरणामृत को धार्मिक दृष्टि से काफी पवित्र माना जाता है। श्रद्धालु बड़ी श्रद्धा से चरणामृत को सिर से लगाकर ग्रहण करते हैं। क्योंकि इसे भगवान के चरणों का प्रसाद यानी चरणों का अमृत माना जाता है। लेकिन चरणामृत केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी काफी फायदेमंद माना गया है। आइए चरणामृत के बारे में और भी रोचक और काम की बातें जानें।

शास्‍त्र कहते हैं अमृतमयी है चरणामृत

चरणामृत यानी कि प्रभु के चरणों का अमृत। इसे पीने से समस्‍त पापों का नाश होता है। शास्‍त्रों में इसका बखान इस तरह मिलता है कि ‘अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्। विष्णो पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते।’ यानी कि यह एक ऐसा अमृत है, जिसे पीने से मनुष्‍य को अकाल मृत्‍यु का भय नहीं रहता। यह सभी पापों का नाश कर देता है। साथ ही भगवान विष्‍णु के चरणों को धोने वाले जल को पीने से व्‍यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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तो इस तरह से हुई थी चरणामृत की उत्‍पत्ति

चरणामृत के बारे में कथा मिलती है कि जब भगवान विष्‍णु ने वामन अवतार धारण किया और राजा बलि से दान में तीन पग भूमि में तीनों लोक मांग लिए। तब ब्रह्माजी ने वामन रूपी भगवान विष्णु के चरण धोकर जल को वापस अपने कमंडल में रख लिया। इसे चरणामृत नाम दिया। यही जल फिर गंगा बनकर पृथ्‍वी पर मनुष्‍यों के कल्‍याण के लिए अवतरित हुआ। रामायण में केवट प्रसंग में भी चरणामृत का महत्‍व बताया गया है। जब केवट भगवान श्रीराम के चरणों को धोकर उस जल को चरणामृत रूप में ग्रहण करता है और परिवार, कुल एवं पितरों को भव पार करवा देता है। यही वजह है कि श्रद्धालु चरणामृत को बड़ी श्रद्धा से ग्रहण करते हैं।

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धार्मिक ही नहीं चिकित्‍सीय महत्‍व भी

चरणामृत का न केवल धार्मिक महत्‍व है बल्कि चिकित्‍सा में भी इसका महत्‍व माना गया है। कहा जाता है कि तांबे के पात्र में रखने से गंगाजल इतना शुद्ध हो जाता है कि वह शरीर की कई व्‍याधियों को दूर कर देता है। साथ ही चरणामृत में तुलसी के पत्तों से इसकी औषधीय गुणवत्ता बढ़ जाती है। यही वजह है कि चरणामृत पीने से व्‍यक्ति की स्‍मरण क्षमता और बुद्धि का विकास होता है।

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