पंडित बनारसी दास के यहां चोरी करने आया चोर, फिर देखा ऐसा नजारा…

संकलन: रमेश जैन
बादशाह अकबर सभी धर्मों के विद्वानों का आदर करते थे। उन्होंने अपने दरबार में सभी धर्मों के विद्वान नियुक्त कर रखे थे। जैन धर्म के विद्वान कवि पंडित बनारसी दास भी उनके दरबारियों में शामिल थे। अकबर उनका बड़ा सम्मान करते थे। संत तुलसीदास भी बनारसी दास का बहुत आदर करते थे। बनारसी दास जी ईमानदार और सादगीपसंद व्यक्ति थे।

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एक बार की बात है, रात काफी बीत चुकी थी लेकिन बनारसी दास को नींद नहीं आ रही थी। वह आत्मचिंतन में लीन थे कि उन्हें लगा, बगल के कमरे में कोई आया है। खट-पट की आवाज से वह समझ गए कि कोई चोर है। उन्होंने खिड़की से दूसरे कमरे में झांका तो देखा कि एक चोर सारा सामान चादर में बांधकर सिर पर रखने की कोशिश कर रहा था, लेकिन रख नहीं पा रहा था। बनारसी दास धीरे से उठकर चोर के पास गए और बोले, ‘भाई, यह सामान मेरे किसी काम का नहीं है, तुम्हारे काम का है। पोटली मैं उठवा देता हूं, तुम इसे ले जाओ।’ चोर की समझ में कुछ नहीं आया कि वह भागे या क्या करे, पर बनारसी दास ने जोर देकर सामान की पोटली चोर के सिर पर रख दी और चोर को चलता कर दिया।

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चोर ने घर जाकर पोटली रखी और अपनी मां को सारी बात बताई तो मां समझ गई कि आज तो पुत्र बनारसी दास के यहां चोरी करके आया है। मां ने उसे डांटा और बोलीं, ‘जा, सारा सामान वापस देकर आ। उनके पैर पकड़कर माफी मांग और कसम खा कि आज के बाद कभी चोरी नहीं करूंगा।’ पुत्र ने बनारसी दास के पैरों में गिरकर माफी मांगी और कसम खाई कि वह अब कभी चोरी नहीं करेगा। वह खेती करने लगा और अपनी मेहनत के बल पर कुछ ही दिनों में एक ठिकाने का ठाकुर बन गया।