पुलिस की मौजूदगी के बीच जब उन्होंने सुभाष घाट पर झंडा फहराया तो अंग्रेज पुलिस की एक गोली उनकी बाजू को चीरती हुई निकल गई। अन्य छात्र तितर-बितर हो गए, पर उन्होंने अपनी धोती को फाड़कर घाव पर बांधा और दूसरा तिरंगा फहराने के लिए डाकघर की ओर दौड़ पड़े। उन्होंने दूसरा तिरंगा वहां फहरा दिया, पर फिर पुलिस ने उन पर गोली चला दी। इस बार गोली उनके पैर में लगी। जगदीश ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने पैर के घाव पर भी पट्टी बांधी और तीसरा झंडा एक पाइप के सहारे चढ़ कर रेलवे स्टेशन पर फहरा दिया।
नीचे उतर ही रहे थे कि इंस्पेक्टर प्रेम शंकर श्रीवास्तव ने उन्हें देख लिया। उसने पहले तो उन्हें पटक कर नीचे गिराया और फिर गोली मार दी। यह गोली जगदीश के सीने में लगी और वह मूर्च्छित हो गए। इलाज के लिए उन्हें देहरादून मिलिट्री अस्पताल ले जाया गया। ऐसा कहा जाता है कि जगदीश को अस्पताल में जब होश आया तो उनसे माफी मांगने को कहा गया, पर असह्य पीड़ा में होते हुए भी उन्होंने माफी मांगने से इनकार कर दिया। इस पर जहर का इंजेक्शन देकर उस मासूम की हत्या कर दी गई।
संकलन : रेनू सैनी