कारण जो भी हो, अब बच्चों ने भूत के डर से उस बगीचे में खेलना ही बंद कर दिया। नरेंद्र को खेलना, दौड़ना-भागना, कसरत करना बहुत पसंद था। अपने साथियों के बगीचे में नहीं आने से उनका खेलना छूट गया था। एक दिन बच्चों से मिलकर कहा, ‘देखो, हमारा खेलना अब बंद हो गया है। यह अच्छी बात नहीं है। चलो, फिर से बगीचे में खेलने चलते हैं।’ बच्चों ने यह कहते हुए सीधे मना कर दिया कि चंपा के पेड़ पर भूत रहता है। उन्होंने सोचा, कुछ उपाय करना होगा। और वह रोज अकेले चंपा के पेड़ के पास आकर खेलने लगे।
बच्चों ने उन्हें ऐसा करने से मना किया और कहा, भूत तुम्हारी गर्दन मरोड़ देगा। तब बच्चों को नरेंद्र ने समझाया, ‘हमलोग इतने दिनों तक खेलते रहे, तब तो भूत नहीं आया था। अब दादू के कहने से भूत आ जाएगा क्या?’ बच्चे उनकी बात से सहमत हो गए। स्वामी विवेकानंद अपने उपदेश में बचपन की इस घटना का जिक्र कर कहते थे कि खेल वाली बात तो एक उदाहरण जैसी है। लेकिन हम जब भी कोई काम ठानते हैं या करते हैं, तो उसमें कोई न कोई बाधा आती ही है। उस मुश्किल को जाने बिना काम छोड़ देना बुद्धिमानी नहीं है।– संकलन : रवींद्र कुमार