कोकिलचंद धाम के बारे में ग्रामीण सुनील सिंह, ओमप्रकाश सिंह, नटवर सिंह,नीरज सिंह और उमाशंकर सिंह ने बताया कि बाबा कोकिलचंद के पिंड को गिद्धौर स्टेट के राजा रावनेश्वर सिंह ने वर्षो पूर्व गांव में ही एक पीपल के वृक्ष के नीचे पूरे श्रद्धा भक्ति के साथ स्थापित किया था। उसके बाद से इसी स्थान पर बाबा की पूजा खुले आसमान में होने लगी। बाबा इस स्थान पर हर हमेशा जीवित रूप में विराजमान रहते हैं। किसी भी व्यक्ति के द्वारा अगर नियमों का उल्लंघन किया जाता है तो उसे तुरंत ही दंडित भी करते हैं। आज भी इस गांव में लोगों द्वारा तीन सूत्र शराब का सेवन नहीं करना, नारी का सम्मान करना और अन्न की रक्षा करने का पालन कड़ाई के साथ किया जाता है। ग्रामीण सत्यनारायण सिंह को 21 दिन तक ब्रह्मचर्य का पालन करने के बाद पूरे नियम के साथ पूजा अर्चना के पश्चात मंदिर निर्माण की प्रेरणा मिली। इसके बाद उन्होंने स्थानीय युवाओं के सहयोग से एक समिति का निर्माण करके भूमि पूजन करने के बाद मंदिर का निर्माण शुरू किया जो अभी भी प्रशासनिक उपेक्षा के कारण अधूरा पड़ा हुआ है। हालांकि स्थानीय युवाओं के प्रयास से हाल ही में बाबा कोकिलचंद धाम को धार्मिक न्यास बोर्ड से निबंधन भी मिला है।
विशेष मन्नत पूरी होने के बाद होती है बामर पूजा
किसी भी व्यक्ति के विशेष मन्नत के पूरा होने पर बाबर पूजा के तहत पूरे नियम,निष्ठा और शुद्धता के साथ बाबा कोकिलचंद को पकवान और मिष्ठान का भोग ढोल नगाड़े के साथ लगाया जाता है। यह पूजा श्रावण, भाद्र,आश्विन और कार्तिक मास में पूर्णरूपेण बंद रहता है। कई लोगों द्वारा बामर पूजा के के दौरान ही बकरा का बलि भी दिया जाता है। श्रावण और भाद्र मास में बाबा के दरबार में बकरा की बलि पर पूर्णरूपेण रोक रहता है। बाबा कोकिलचंद धाम न्यास बोर्ड के सचिन चुनचुन कुमार ने बताया कि बाबा की महिमा अपरंपार है और उनके दरबार में सच्चे मन से मांगी सभी मुराद पूरी होती है।
ग्रामीणों द्वारा आषाढ़ मास में वार्षिक पूजा के पश्चात ही धान के फसल की रोपणी प्रारंभ की जाती है। अग्रहण मास के शुक्ल पक्ष में नए धान से तैयार किया गया चूड़ा और अन्य सामग्री नेवान के दौरान बाबा को भोग लगाया जाता है। बाबा के मंदिर में फरियाद लगाने के बाद रुके हुए सभी कार्य पूरे हो जाते हैं। अगर सरकार इस मंदिर को पर्यटन स्थल का दर्जा प्रदान कर दे तो यह आदर्श गांव पूरे राज्य के लोगों के लिए एक नायाब उदाहरण बन जाएगा। इसके पश्चात इस मंदिर की ख्याति बिहार के साथ-साथ दूसरे प्रदेशों में भी फैल जाएगी। उनके प्रति अटूट श्रद्धा और भक्ति के कारण इस गांव से जुड़े हुए दूरदराज रहने वाले लोगों द्वारा भी शराब का सेवन नहीं किया जाता है।
जल्द ही मिलेगा पर्यटन स्थल का दर्जा
बाबा कोकिलचंद धाम के कार्यकारी अध्यक्ष सह अनुमंडल पदाधिकारी अभय कुमार तिवारी ने बताया कि जल्द ही मंदिर समिति के सदस्यों के साथ बैठक करके इसके विकास के लिए रणनीति बनाई जाएगी। अधूरे पड़े मंदिर को भी जल्द ही पूरा किया जाएगा। समुचित विकास के लिए पर्यटन स्थल का दर्जा प्रदान करने को लेकर राज्य सरकार को प्रस्ताव भेजा जाएगा।
भगवान शिव के दूत के रूप में होती है बाबा कोकिलचंद की पूजा
गिद्धौर प्रखंड के गंगरा गांव में बाबा कोकिलचंद की पूजा भगवान शिव के दूतके रूप में होती है। बाबा के अवतरण को लेकर ऐसी कथा प्रचलित है कि इनका जन्म भूमिहार ब्राह्मण बिरादरी के एक गरीब किसान परिवार में हुआ था। इन्होंने अपना घर और परिवार त्याग कर कई वर्षों तक वन में एकांत स्थल पर कठिन तपस्या किया था। इन्होंने तपस्या और साधना के बल पर देवत्व को प्राप्त किया था।एक दिन यह जंगल में घूम रहे थे। इस दौरान बाघ के एक जोड़े ने इन पर हमला कर दिया। जिससे लड़ते-लड़ते इनकी मृत्यु हो गई।
इसके पश्चात भगवान शिव की कृपा से इन्हें देवतुल्य स्थान मिला और भगवान शिव के संदेशवाहक के रूप में इन्हें देवताओं द्वारा पूजा के लिए स्थान प्रदान किया गया। आज भी बैद्यनाथ धाम स्थित भगवान शिव के मंदिर के समीप बाबा कोकिलचंद की पूजा होती है। स्थानीय लोगों की बस एक ही इच्छा है कि इनका अधूरा पड़ा मंदिर जल्द से जल्द भव्य और आकर्षक तरीके से तैयार हो जाए। इसके अलावा यह एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल बन जाए ताकि बाबा के दरबार में सालों भर श्रद्धालुओं का ताता लगा रहे।