कुछ दिन बाद बाबा आमटे की मां उन्हें बगीचे में ले गईं। उन दिनों पतझड़ का मौसम चल रहा था और पेड़ के सड़े-गले पत्ते, पीले होकर नीचे गिर रहे थे। मां ने उन पत्तों को दिखाते हुए बाबा आमटे से कहा, ‘बेटा, देखो ये पुराने पत्ते किस प्रकार अनायास झड़ रहे हैं। हमारे मन के पुराने मनमुटाव, मतभेद को भी इसी तरह झड़ जाना चाहिए। हमें अपने मन के अंदर पुराने द्वेष और गलतफहमी को जमा करके नहीं रखना चाहिए। उन्हें भी पेड़ के सड़े-गले पत्तों की तरह झटक कर फेंक देना चाहिए। ये न केवल हमारे तनाव और दुख का कारण बनते हैं, बल्कि हमारी उन्नति में भी बाधक भी होते हैं।’
मां के इन प्रेरक शब्दों ने बाबा आमटे पर गहरा असर किया। उन्हें ध्यान आया कि वह तो कई दिनों से अपने उस मित्र से बात भी नहीं कर रहे हैं। वह उसी समय अपने उस मित्र के घर पहुंचे जिससे रूठे हुए थे। उन्होंने अपने व्यवहार पर माफी मांगते हुए उससे बातचीत शुरू कर दी। मां की ओर से मिली इस सीख का ही परिणाम था कि धीरे-धीरे उन्होंने जरा-जरा सी बातों पर रूठने की आदत बिलकुल छोड़ दी।– संकलन : दीनदयाल मुरारका