फकीर ने जवाब दिया, ‘यह जिस व्यक्ति की खोपड़ी है, वह सिंहासन पर बैठ चुका होगा। मैं क्षमा इसलिए मांगता हूं, क्योंकि आज वह जीवित होता और मेरा पैर उसके सिर पर लग जाता तो पता नहीं मेरी क्या हालत बनाता। इसलिए यहां क्षमा मांगना ही ठीक है।’ मित्रों ने कहा- तुम बड़े पागल हो। चुआंग ने कहा, ‘मैं तो उस मरे हुए आदमी से कहना चाहता हूं कि एक समय तू सोचता होगा, मैं सिंहासन पर बैठा हूं। लेकिन आज उसकी खोपड़ी लोगों की, एक फकीर की ठोकर खा रही है और उफ्फ भी नहीं कर सकती। कहां गया तेरा सिंहासन, कहां गया तेरा अहंकार। सुनकर मित्र अवाक् रह गए।’
फकीर ने मित्रों को समझाया- आदमी को कभी पद और मान का घमंड नहीं करना चाहिए। लेकिन इस संसार में हर कोई सात्विक प्रवृत्ति का नहीं है। तामसिक विचार वालों की कमी नहीं है। ऐसे व्यक्ति किसी की भी उन्नति से प्रसन्न होने के बजाय दुखी होते हैं। कोई न कोई कमी निकालकर औरों की आलोचना करते हैं। लेकिन किसी को भी अपनी आलोचना या निंदा पर दुखी नहीं होना चाहिए। कोई आपकी आलोचना करता है तो अपने अंदर झांक कर देखें, न कि उसके प्रति दुर्भावना रखें। किसी ने आपकी गलती बताई है, तो उसे यह कहकर धन्यवाद दें कि आपने मुझे मेरी गलती का अहसास करा दिया। फकीर से मित्रों को नई सीख मिली।
संकलन : रमेश जैन