मंदिर का इतिहास
महारानी वैष्णो देवी मंदिर की नींव 1955 में रखी गई थी। मान्यता है कि यहां पहले कुंआ था, जिसमें अशोक नाम का 4 साल का बच्चा गिर गया था, लेकिन वह डूबा नहीं। आसपास के लोग कुंए के पास पहुंचे तो बच्चा लाल कपड़े में लिपटा हुआ कुंए में बैठा दिखता है। यह देख लोग हैरान रह जाते हैं। बच्चा बताता है कि वह कुंए में माता की गोद में बैठा था। यह सुनने के बाद मुकंद लाल, हरनाम, फकीर चंद और संत राम निरूला माता की फोटो रख पूजा शुरू कर देते हैं। समय बीतने के साथ लोगों की मनोकामना पूरी होती गईं, जिसके बाद यहां दान में मिले धन से मंदिर का निर्माण किया गया।
नौ जोत होती है प्रज्वलित
यहां नवरात्र में हिमाचल प्रदेश में माता ज्वालाजी मंदिर से भक्त पैदल जोत लेकर आते हैं और नवरात्र के पहले दिन पूरे विधि विधान से मंदिर में मां के सामने नौ अखंड जोत प्रज्वलित की जाती है। मंदिर में दर्शन करने आने वाले भक्त यहां से घर जोत लेकर जाते हैं। नवरात्र के नौ दिन होने के बाद झांकी निकाली जाती है और ज्वालाजी से लाई गई जोत को वापस वहीं भेज दिया जाता है। हर साल यहां दो लाख से अधिक लोग दर्शन करने आते हैं।
दो पेड़ लेकिन एक जड़
यह जानकार लोगों को हैरानी होती है कि यहां मंदिर परिसर में दो पेड़ हैं, लेकिन दोनों की जड़ एक ही है। यहां लोग मन्नत की चुनरी बांधते हैं। नवमी को सुबह पांच बजे आकर परिक्रमा लगाते हैं। भक्तों की मान्यता है कि ऐसा करने से बहुत जल्दी मन्नत पूरी हो जाती है। यह कई साल पुराना पेड़ है।