दो दिन बाद ही सिंगापुर पर जापानियों का कब्जा हो गया। अन्य लोगों के साथ मिग को भी जेल में बंद कर दिया गया। जापानी सेना ने डॉक्टर ब्राउन को भी कैद करके जेल में डाल दिया। तीन साल बाद सिंगापुर आजाद हुआ। सभी कैदियों को छोड़ दिया गया। डॉक्टर ब्राउन और मिग भी जेल से छूटकर अपने-अपने घर लौट आए। मिग ने घर पहुंचकर सबसे पहले डॉक्टर ब्राउन के कपड़े ढूंढकर धोए और उन्हें सुखाकर प्रेस किया। कपडों को लेकर वह डॉक्टर ब्राउन के घर पहुंचा और कपड़े देते हुए बोला, ‘सर, इस बार बहुत देर हो गई। मैं क्षमा चाहता हूं। मुझे जापानियों ने बंदी बनाकर जेल में डाल दिया था। आपको याद है न, तीन साल पहले आपने ये कपड़े मुझे धोने के लिए दिए थे।’
मिग की ईमानदारी और काम के प्रति समर्पण देखकर डॉक्टर की आंखें नम हो गईं। वह बोले, ‘मेरे बच्चे मैं भी कल ही जेल से छूटकर आया हूं। तुम्हारी ईमानदारी देखकर मैं अपना सारा दर्द भूल गया। मिग, अब तुम अनाथ नहीं हो। तुम मेरे साथ ही रहोगे और कपड़े नहीं धोओगे। कल से तुम स्कूल जाना। यही तुम्हारी ईमानदारी का पुरस्कार है।’ मिग की आंखें डबडबा गईं।– संकलन : रमेश जैन