बगदाद के खलीफा उमर जान बहुत ही ईमानदार और नेक दिल इंसान थे। वह राजकाज और प्रजा की सेवा के बदले रोजाना शाम को खजाने से अपने मेहनताने के केवल तीन दिरहम लिया करते थे। इससे उनके परिवार का पालन-पोषण बड़े आराम से हो जाता था। एक दिन उनकी बेगम ने कहा, ‘पांच दिन बाद ईद आने वाली है। अगर आप मुझे खजाने से तीन दिन की तनख्वाह एडवांस लाकर दे दें, तो मैं बच्चों के लिए नए कपड़े बनवा लूं।’
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उस समय तो खलीफा ने बहाना बनाकर बेगम को टाल दिया लेकिन रात में बेगम ने फिर खलीफा को घेर लिया। बातें सुनाकर बेगम गईं तो खलीफा ने चोरी-छिपे बच्चों के कपड़े देखे। उन्हें लगा कि इन कपड़ों को धोकर तो ईद का काम आराम से चल जाएगा। उन्होंने बेगम को समझाया, लेकिन वह नहीं मानीं और जिद करके कहने लगीं कि आप कैसे बादशाह हो? मैं तो केवल तीन दिन की तनख्वाह पेशगी मांग रही हूं, जिसे आप बाद में कटवा देना। इस पर बादशाह सोच में पड़ गए और बेगम को समझाने की तरकीब सोचने लगे।
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अगले दिन बेगम ने फिर पेशगी लाने पर जोर दिया तो खलीफा बोले, ‘बेगम, तुम कैसी अजीब बात कह रही हो? अगर मैं आपको तीन दिन की तनख्वाह पेशगी लाकर दे दूं और उसी दिन या अगले दिन मेरे प्राण निकल जाएं तो वह कर्ज कौन चुकाएगा?’ फिर कुछ पल रुककर खलीफा बोले, ‘हां एक बात हो सकती है बेगम। अगर तुम खुदा से मेरी तीन दिन की जिंदगी का पट्टा ला दो तो मुझे राज्य के खजाने से तीन दिन का वेतन एडवांस लाने में कोई ऐतराज नहीं होगा।’ खलीफा की इस बात का बेगम पर गहरा असर पड़ा और वह निरुत्तर हो गईं। पेशगी लाने की जिद छोड़कर वह पति की ईमानदारी और नेकनीयती पर फिदा हो गईं।
संकलन : रमेश जैन