बुद्ध पूर्णिमा 2018: जानें, किस तरह सत्य की खोज कराई महात्मा बुद्ध ने

ओशो
जिसे तुम धर्म कहते हो, आम तौर से उसमें श्रद्धा पहला कदम है और संदेह की तो कोई जगह ही नहीं है। इसलिए बहुत बुद्धिमान लोगों को मजबूरी में अधार्मिक रहना पड़ता है, क्योंकि यह बात उनकी पकड़ में ही नहीं आती। संदेह को कहां ले जाएं? है तो है! और अगर परमात्मा ने दिया है संदेह तो उसे काटकर कैसे फेंक दें? उसका कोई उपयोग होना चाहिए। इसलिए मैं कहता हूं, बुद्ध ने अनूठी बात कही। बुद्ध ने कहा, ‘संदेह का उपयोग हो सकता है। संदेह को श्रद्धा की सेवा में लगाया जा सकता है।

संदेह के ही सहारे श्रद्धा खोजी जा सकती है। यही तो विज्ञान करता है और वैज्ञानिक जब एक निष्पत्ति पर पहुंचता है तो संदेह का कारण ही नहीं रह जाता। सब परीक्षण कर लिए, अवलोकन कर लिया, सब तरह से जांच-परख कर ली, ऐसा पाया। तथ्य। धारणा नहीं, तथ्य।

बुद्ध का एक नाम है तथागत। उसका अर्थ होता है, जिसने जगत में तथ्य को लाया, जिसके द्वारा जगत में तथ्य आया। इसके पहले कल्पनाएं थीं, धारणाएं थीं, विश्वास था। तथागत प्यारा शब्द है। उसके बहुत अर्थ होते हैं। एक अर्थ में ‘आगत’ का अर्थ होता है, आया और ‘तथा’ का अर्थ होता है, तथ्य। जिसके द्वारा तथा, तथ्य जगत में उतरा। जिसने सत्य को तथ्य के माध्यम से खोजने के लिए कहा, जिसने श्रद्धा का शोध संदेह के द्वारा करने को कहा। बुद्ध ने संदेह को शुद्धि के लिए उपयोग कर लिया।

विज्ञान कहता है- निरपेक्ष रहो, कोई अपेक्षा लेकर सत्य के पास मत जाओ। आंखें खाली हों, ताकि तुम वही देख सको जो है। यथावत। तथावत। तुम अगर पहले से ही कुछ मानकर चल पड़े हो तो वही देख लोगे। तुम्हारी कल्पना का प्रक्षेपण हो जाएगा। जब तुम्हारी धारणा हो कि फलां आदमी चोर, तो तुम्हें चोर दिखाई पड़ने लगेगा। जब तुम्हारी धारणा हो कि फलां आदमी साधु, तुम्हें साधु दिखाई पड़ने लगेगा। यह सत्य को खोजने का ढंग नहीं। धारणा अगर पहले ही बना ली तो तुमने तो असत्य में जीने की कसम खा ली। तो बुद्ध ने कहा, कोई धारणा नहीं। कोई शास्त्र लेकर सत्य के पास मत जाना। सत्य के पास तो जाना निर्वस्त्र और नग्न, शून्य। दर्पण की भांति जाना सत्य के पास। तो जो हो, वही झलके। तो ही जान पाओगे।

अब मैं तुमसे दूसरी बात कहना चाहता हूं कि विज्ञान से भी कठिन काम बुद्ध ने किया। क्योंकि विज्ञान तो कहता है, वस्तुओं के प्रति निरपेक्ष भाव रखना। वस्तुओं के प्रति निरपेक्ष भाव रखना तो बहुत सरल है, लेकिन स्वयं के प्रति निरपेक्ष भाव रखना बहुत कठिन है। बुद्ध ने वही कहा। विज्ञान तो बहिर्मुखी है, बुद्ध का विज्ञान अंतर्मुखी है। धर्म का अर्थ होता है, अंतर्मुखी विज्ञान। बुद्ध ने कहा, जैसे दूसरे को देखते हो बिना किसी धारणा के, ऐसे ही अपने को भी देखना बिना किसी धारणा के।