बात 1950 के दशक की है। अमेरिका में एक नया मुक्केबाज बड़ी तेजी से उभर रहा था। उसका नाम कैसियस था और बालिग होने से पहले ही वह शौकिया मुक्केबाजी करते हुए दर्जनों गैर पेशेवर मुकाबले जीत चुका था। लगातार जीतते रहने के बाद कैसियस को भरोसा हो गया कि हो ना हो, बॉक्सिंग का अगला वर्ल्ड चैंपियन वही बनेगा। अब उसे योग्य गुरु की तलाश थी। उस समय एंजेलो डॉन्डी बॉक्सिंग के विश्व प्रसिद्ध कोच थे और लुईविल में किसी और को बॉक्सिंग सिखा रहे थे।
सन 1957 में कैसियस ने एंजेलो को फोन करके कहा, ‘मैं गोल्डन ग्लव्स जीतने वाला हूं और 1960 का ओलिंपिक भी। मुझे आपसे सीखना है।’ पर एंजेलो को उस पर विश्वास नहीं हुआ और उन्होंने कैसियस को मना कर दिया। कैसियस ने इससे हार नहीं मानी। उसने दोगुनी मेहनत की और 1960 तक उसने गोल्डन ग्लव्स और एमैच्योर एथलेटिक यूनियन चैंपियनशिप जीत ली। 1960 में रोम में ओलिंपिक हुआ। वहां कैसियस ने पोलैंड के जैबिग्नियर पिट्जकोस्की को हरा कर गोल्ड जीता। इतनी बड़ी विजय हासिल करने के बावजूद कैसियस अभी तक खाली हाथ ही था, क्योंकि वह अभी तक गैर पेशेवर खिलाड़ी था।
पेशेवर खिलाड़ी बनने के लिए उसे अब भी एंजेलो की कोचिंग चाहिए थी, मगर उसमें बहुत पैसे लगते। उसने जुगत लगाई और कुछ व्यापारियों से खुद को स्पॉन्सर करा लिया। तब एंजेलो मियामी में अपना जिम चलाते थे। पैसे मिलते ही कैसियस मियामी पहुंचा और एंजेलो से फिर बोला, ‘मैं ही अगला वर्ल्ड हैवीवेट चैंपियन हूं, अब मेरे पास पैसे भी हैं।’ तब तक एंजेलो जान चुके थे कि वह जो कहता है, करके ही दम लेता है। उन्होंने कैसियस का गुरु बनना स्वीकार कर लिया। यही कैसियस आगे चलकर मोहम्मद अली के नाम से जाने गए, जिन्होंने अपनी मेहनत के दम पर मनपसंद गुरु पाया और जिनके मुक्के का जवाब लंबे समय तक दुनिया को नहीं मिल पाया।
संकलन : रुचि सिन्हा