ब्रिटिश शासन में स्पेशल कुंभ बजट

प्रमोद राय

नई दिल्ली।। कुंभ में करोड़ों लोगों की आस्था और जनभावनाओं का ब्रिटिश शासन भी कायल हो चला था। 100 से 150 साल पुराने लिखित दस्तावेज बताते हैं कि इलाहाबाद में संगम तट पर लगने वाले कुंभ मेलों के लिए अंग्रेजी हुकूमत न सिर्फ आय-व्यय का विशेष हिसाब-किताब रखती थी, बल्कि यहां उमड़ने वाले भारी जनसैलाब को आर्थिक तौर पर भुनाने की कोशिश भी करने लगी थी।

इलाहाबाद के क्षेत्रीय अभिलेखागार कार्यालय से प्राप्त वर्ष 1905-06 के कुंभ मेले के बजट की कॉपी से पता चलता है कि सरकार ने उस समय मेले की बुनियादी व्यवस्था और रखरखाव पर 90,004 रुपए 1 आना 3 पैसे खर्च किए थे, जबकि उस वर्ष मेले से कई तरह के टैक्स और चार्जेज के रूप में 62,430 रुपए 1 आना 11 पैसे की आमदनी हुई थी। दस्तावेज बताते हैं कि कैसे जनभावनाओं के दबाव में अंग्रेजों ने साल दर साल मेले पर खर्च में इजाफा किया।

20वीं सदी के पहले महाकुंभ पर पुलों के निर्माण पर 16,296 रुपए खर्च हुए, जबकि इसी मद में इसके पहले वाले यानी साल 1893-94 के कुंभ मेले पर 9,500 रुपए खर्च हुए थे। स्नान घाट तक जाने के लिए पक्की सड़क पर 1080 रुपए खर्च हुए, जबकि कच्ची सड़क की मरम्मत में 3989 रुपए लगे। मेला क्षेत्र में आने वाली जमीन के हर्जाने के तौर पर 825 रुपए 3 आना 9 पैसे दिए गए। चिकित्सकीय सेवाओं पर 5094 रुपए खर्च किया गया।

मौजूदा राज्य सरकार ने जिस तरह बिजली विभाग, जल निगम और अन्य स्थानीय निकायों को अलग-अलग इंतजाम के लिए एकमुश्त राशियां आवंटित की हैं, उसी तरह उस समय भी एग्जेक्युटिव इंजिनियर, कैंटोनमेंट मैजिस्ट्रेट, म्यूनिसिपल इंजिनियर (वॉटर सप्लाई) को 1000 से लेकर 20,000 रुपए तक आवंटित किए गए थे।

दिलचस्प बात यह है कि ब्रिटिश सरकार ने मेलों से आमदनी के इंतजाम भी अच्छी तरह किए थे। वर्ष 1905-06 के कुंभ में लगने वाली दुकानों से 24,517 रुपए 8 आने की वसूली हुई, जबकि कुछ खास शिविरों और हट्स से 10,147 रुपए 11 आने की कमाई हुई। रिसीट शीट की कॉपी बताती है कि बार्बर टिकट्स के तौर पर सरकार को 10444 रुपए 5 आने मिले, जबकि हॉकर्स से 1035 रुपए की आमदनी हुई।