भगवान को अपना सहारा समझना मानव की सबसे बड़ी भूल है: ओशो

एक साधु के आश्रम में एक युवक बहुत समय से रहता था। फिर ऐसा संयोग आया कि युवक को आश्रम से विदा होना पड़ा। रात्रि का समय है, बाहर घना अंधेरा है। युवक ने कहा: रोशनी की कुछ व्यवस्था करने की कृपा करें। उस साधु ने एक दीया जलाया, उस युवक के हाथ में दीया दिया, उसे सीढ़ियां उतारने के लिए खुद उसके साथ हो लिया, और जब वह सीढ़ियां पार कर चुका और आश्रम का द्वार भी पार कर चुका, तो उस साधु ने कहा कि अब मैं अलग हो जाऊं, क्योंकि इस जीवन के रास्ते पर बहुत दूर तक कोई किसी का साथ नहीं दे सकता है।

अच्छा है कि मैं इसके पहले विदा हो जाऊं कि तुम साथ के आदी हो जाओ, और इतना कह कर उस घनी रात में, उस अंधेरी रात में उसने उसके हाथ के दीया को फूंक कर बुझा दिया, वह युवक बोला: यह क्या पागलपन हुआ? अभी तो आश्रम के हम बाहर भी नहीं निकल पाए, साथ भी छोड़ दिया और दीया भी बुझा दिया! उस साधु ने कहा, ‘दूसरों के जलाए हुए दीपक का कोई मूल्य नहीं है।

अपना ही दिया हो तो अंधेरे में काम देता है, किसी दूसरे के दीया काम नहीं देते हैं। खुद के भीतर से प्रकाश निकले तो रास्ता प्रकाशित होता है, और किसी तरह रास्ता प्रकाशित नहीं होता है। मैं निरंतर सोचता हूं, लोग सोचते होंगे कि मैं आपके हाथ में कोई दीया दे दूंगा, जिससे आपका रास्ता प्रकाशित हो जाए, तो आप गलती में हैं। आपके हाथ में कोई दीया होगा तो मैं उसे बड़ी निर्ममता से फूंक कर बुझा दे सकता हूं। मेरी मंशा और मेरा इरादा यही है कि आपके हाथ में अगर कोई दूसरे का दीया प्रकाशित हो तो मैं उसे फूंक दूं, उसे बुझा दूं। आप अंधेरे में अकेले छूट जाएं, कोई आपका संगी-साथी हो तो उसे भी छीन लूं, और तभी जब आपके पास दूसरों का जलाया हुआ प्रकाश न रह जाए और दूसरों का साथ न रह जाए, तब आप जिस रास्ते पर चलते हैं, उस रास्ते पर परमात्मा आपके साथ हो जाता है।

आपकी आत्मा का दीया जलने की संभावना पैदा हो जाती है। सारी जमीन पर ऐसा हुआ है। सत्य की तो बहुत खोज है, परमात्मा की बहुत चर्चा है, लेकिन, लेकिन ये सारे कमजोर लोग कर रहे हैं, जो साथ छोड़ने को राजी नहीं हैं और जो दीया बुझाने को राजी नहीं हैं। अंधेरे में जो अकेले चलने का साहस करता है बिना प्रकाश के, उसके भीतर साहस का प्रकाश पैदा होना शुरू हो जाता है, और जो सहारा खोजता है, वह निरंतर कमजोर होता चला जाता है।

भगवान को आप सहारा न समझें, और जो लोग भगवान को सहारा समझते होंगे, वे गलती में हैं। उन्हें भगवान का सहारा नहीं उपलब्ध हो सकेगा। कमजोर लोगों के लिए इस जगत में कुछ भी उपलब्ध नहीं होता। और जो शक्तिहीन हैं और जिनमें साहस की कमी है, धर्म उनका रास्ता नहीं है। दिखता उल्टा है। दिखता यह है कि जितने कमजोर हैं, जितने साहस हीन हैं, वे सभी धार्मिक होते हुए दिखाई पड़ते हैं।

कमजोर को, डरपोक को, जिनकी मृत्यु करीब आ रही है उनको, घबराहट में, भय में
धर्म का ही मार्ग मालूम होता है। इसलिए धर्म के आस-पास कमजोर और साहसहीन लोग इकट्ठे हो जाते हैं। जब कि बात उलटी है। धर्म तो उनके लिए है, जिनके भीतर साहस हो, जिनके भीतर शक्ति हो, जिनके भीतर बड़ी दुर्दम्य हिम्मत हो और जो कुछ अंधेरे में अकेले बिना प्रकाश के चलने का दुस्साहस कर सकें, तो यह मैं प्राथमिक रूप से आपसे कहूं। दुनिया में यही वजह है कि जब से डरपोक लोगों ने धर्म को चुना है, तब से धर्म कमजोर हो गया, और अब तो सारी दुनिया में कमजोर ही धार्मिक हैं।

जिनमें थोड़ी सी हिम्मत है, वे धार्मिक नहीं हैं। जिनमें थोड़ा सा साहस है, वे नास्तिक हैं और जिनमें साहस की कमी है, वे सब आस्तिक हैं। भगवान की तरफ सारे कमजोर लोग इकट्ठे हो गए हैं, इसलिए दुनिया में धर्म नष्ट होता चला जा रहा है। इन डरपोक लोगों को भगवान तो बचा ही नहीं सकता, ये कमजोर भगवान को कैसे बचाएंगे? कमजोरों की कोई रक्षा नहीं है, और कमजोर तो खुद ही निर्बल है तो वो किसी की रक्षा कैसे करेंगे? सारी दुनिया में मनुष्य के इतिहास के इन दिनों में, इन क्षणों में, जो धर्म का अचानक ह्रास और पतन हुआ है, उसका बुनियादी कारण यही है। यदि मैं आपसे कहूं कि अगर आपमें साहस हो, तो ही धर्म के रास्ते पर चलें, क्योंकि इसी स्थिति में चलने पर धर्म का मार्ग खुलता है। वर्ना तो, दुनिया में बहुत रास्ते हैं, धर्म आपके लिए नहीं हो सकता।