वर्षों से चली आ रही है परंपरा
उत्तरी कर्नाटक के यादगीर जिले के मौनेश्वर मंदिर में प्रसाद के रूप में गांजे को बांटा जाता है। स्थानीय समुदाय जैसे अवधूत, शारना और शपथ के लोग इसे भगवान का प्रसाद मानकर अलग-अलग रूप में इसका सेवन करते हैं। गांजे को प्रसाद के रूप में बांटने की परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है और लोग इसे पूरी श्रद्धा के साथ मानते भी है और यह उनके लिए मात्र भगवान के प्रति आस्था है।
गांजे से मिलती है आध्यात्मिक शांति
भगवान शिव को समर्पित मौनेश्वर मंदिर के बारे में मान्यता है कि मंदिर में आने पर ही एक अलग सकारात्मक अहसास होता है और मन में शांति मिलती है। जो भी भक्त सच्चे मन से यहां पूजा अर्चना करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। भक्तों का कहना है कि प्रसाद में मिले गांजे का सेवन करने से उनको आध्यात्मिक शांति मिलती है और जीवन को नई दिशा मिलती है। सावन और महाशिवरात्रि के मौके पर यहां काफी भीड़ देखने को मिलती है।
वार्षिक मेले का होता है आयोजन
जनवरी में मौनेश्वर मंदिर के पास एक विशाल वार्षिक मेले का भी आयोजन होता है। मौनेश्वर या मनप्पा की पूजा अर्चना करने के बाद श्रद्धालुओं को गांजे के पैकेट्स दिए जाते हैं, जिसे भक्त भक्तिभाव से ग्रहण करते हैं और भाग्यवान समझते हैं। मौनेश्वर मंदिर में मिलने वाले प्रसाद के संबंध में श्रद्धालुओं का कहना है कि प्रसाद में दिया जाने वाला गांजा एक पवित्र घास है, जो आपको अध्यात्म के पथ पर ले जाने में मदद करती है।
ध्यान के लिए करते हैं प्रयोग
गांजे का प्रसाद केवल मौनेश्वर मंदिर में ही नहीं बल्कि कर्नाटक के कई मंदिर में मिलता है। ज्यादातर लोग ध्यान व साधना करने के लिए गांजे का प्रयोग करते हैं। लोगों का मानना है कि इस पवित्र घास की आदत नहीं लगती है क्योंकि दिन या हफ्ते में एक बार ही इसका प्रयोग किया जाता है। यह परंपरा सुनने में भले ही अजीब लगे लेकिन विविधताओं से भरे इस देश में हर आस्था का सम्मान किया जाता है।
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