थोड़ी देर में घुड़सवार सैनिकों ने राणे खान को घेर लिया और उससे मराठा सेनापति के बारे में पूछने लगे। राणे खान ने अनभिज्ञता जताते हुए महादजी सिंधिया के बारे में कुछ भी जानकारी होने से मना किया। सैनिकों को राणे खान की बातों पर भरोसा नहीं हो रहा था। एक सैनिक ने राणे खान के गले पर तलवार लगाते हुए कहा, ‘तुम झूठ बोल रहे हो, सही-सही बता दो वरना तुम्हारी गर्दन मैं अभी उड़ा दूंगा।’ राणे खान ने आसमान की तरफ देखते हुए कहा, ‘अल्लाह कसम, भाई! मैंने सेनापति को नहीं देखा।’ सैनिकों के वहां से चले जाने के बाद राणे खान वापस झुरमुट में गया और महादजी को लेकर फिर से आगे बढ़ा।
रास्ते में उन्होंने राणे खान से पूछा, तुमने एक मुसलमान होते हुए भी अल्लाह की झूठी कसम क्यों खाई? राणे खान ने कहा, ‘महाराज, मेरे झूठ बोलने से आपकी जान बच गई। इस पर तो अल्लाह भी मुझे माफ कर देगा, क्योंकि मैंने नेकी के लिए झूठ बोला।’ महादजी मुग्ध भाव से बोले, ‘तुमने बहुत बड़ी सीख दी है आज। जीवन में हमेशा दूसरों की भलाई का उद्देश्य ही हमारे मन में सबसे ऊपर होना चाहिए। इसमें कहीं हमारी गलती भी होती है तो ईश्वर उसके पीछे हमारे उद्देश्यों को समझता है और वह हमें माफ कर देता है।’ – संकलन : दीनदयाल मुरारका