मलमास में यहां 33 करोड़ देवी देवताओं करते हैं निवास, गाय का पूंछ पकड़कर नदीं को करते हैं पार

18 जुलाई से अधिकमास या मलमास की शुरुआत हो चुकी है और 16 अगस्त को इसका समापन होगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मलमास की अवधि में बिहार के राजगीर में सनातन धर्म के सभी 33 करोड़ देवी-देवताओं निवास करते हैं। राजगीर में भगवान विष्णु की शालीग्राम के रूप में पूजा की जाती है। यहां पर ब्रह्मकुंड व सप्तधाराओं में स्नान का विशेष महत्व है। मलमास में कोई भी मांगलिक व शुभ कार्य का आयोजन नहीं किया जाता है। इस दौरान भगवान विष्णु का ध्यान व जप तप करने का अधिक फल मिलता है।

पिंडदान का है विशेष महत्व
मलमास के दौरान जिनका निधन हो जाता है, उनका पिंडदान केवल राजगीर में ही होता है। पितरों की आत्मा की शांति के लिए यहां पिंडदान, तर्पण विधि और श्राद्ध कर्म वैतरणी नदी पर किए जाते हैं। हिंदू धर्म में वैतरणी नदी का विशेष महत्व है। पौराणिक धर्म ग्रंथों में खासकर राजगीर के पुरुषोत्तम मास मेले में भवसागर पार लगाने वाली नदी वैतरणी का महत्वपूर्ण उल्लेख मिलता है।

पापों से मिलती है मुक्ति

राजगीर की परंपरा के अनुसार, पुरुषोत्तम मास मेले के दौरान गाय की पूंछ पकड़कर वैतरणी नदी पार करने पर मोक्ष व स्वर्ग की प्राप्ति होती है और व्यक्ति जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। वहीं जाने अनजाने में हुए पाप से मुक्ति के साथ-साथ सहस्त्र योनियों मे शामिल नीच योनियों से भी मुक्ति मिल जाती है।

राजगीर का है धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व
पौराणिक वैतरणी नदी का इतिहास काफी गौरवमयी व समृद्धशाली रहा है। मलमास मेले के दौरान भारत के विभिन्न राज्यों से श्रद्धालु यहां गर्म कुंड के साथ साथ वैतरणी नदी में स्नान करते हैं। पुरोहित यहां एक माह तक गाय के बछड़ा को लेकर रहते हैं। राजगीर का धार्मिक और ऐतिहासिक दोनों ही महत्व है। राजगीर कभी मगध साम्राज्य की राजधानी हुआ करता था। साथ ही मौर्य साम्राज्य का उदय भी यहीं से हुआ था। राजगीर में वैतरणी नदी के अलावा 22 कुंड और 52 धाराएं भी हैं।– प्रणय राज