अधिकारी ने बेरुखी से कहा, ‘ऐ सुनो! क्या तुम रॉयल सोसायटी के कर्मचारी हो?’ वृद्ध व्यक्ति ने कहा, ‘जी हां, मैं चार दशकों से अधिक समय से इस सोसायटी की सेवा कर रहा हूं। बताइए, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं?’ अधिकारी ने थोड़े गुस्से में चिड़चिड़ाकर कहा, ‘तुम कितने साल से यहां काम कर रहे हो, इससे मेरा कोई मतलब नहीं है। मुझे एक जरूरी काम से यहां के एक बड़े वैज्ञानिक से मिलना है। मुझे बताया गया कि वह यहीं मिलेंगे, मैंने पूरी प्रयोगशाला छान मारी पर वह वैज्ञानिक कहीं भी नहीं मिले। लगता है, उस गार्ड ने मुझे गलत जगह पर भेज दिया। मैं उसकी शिकायत करूंगा।’ वृद्ध व्यक्ति सहजता से कहा, ‘सर, आपको किन महान वैज्ञानिक से मिलना है?’
अधिकारी ने व्यंग्य भाव से उस वृद्ध व्यक्ति की तरफ देखा और कहा, ‘अरे, तुम नहीं समझ पाओगे। न ही उनसे मिलने में मेरी कोई मदद कर पाओगे।’ वृद्ध ने कहा, फिर भी एक बार बताइए तो वह वैज्ञानिक हैं कौन? अधिकारी ने खीझ कर कहा, ‘ क्या तुम मुझे माइकल फराडे से मिलवा सकते हो?’ वृद्ध व्यक्ति मुस्करा कर बोले, ‘जी बैठिए, मुझे ही माइकल फराडे कहते हैं।’ यह सुनकर अधिकारी का मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया। वह माइकल फराडे जैसे महान वैज्ञानिक की सादगी और विनम्रता को देखकर उनके प्रति नतमस्तक हो गया। – संकलन: रेनू सैनी