मां दुर्गा में हैं ये 8 प्रकार की शक्ति, जानिए भगवती के निर्माण की कथा

पंडित श्री राम शर्मा आचार्य
दशहरा शौर्य और स्वास्थ्य का पर्व है। इस दिन हम अपनी भौतिक शक्ति, मुख्यतया शस्त्र और स्वास्थ्य बल का लेखा-जोखा करते हैं। अपनी शक्तियों को विकसित एवं सामर्थ्ययुक्त बनाने के लिए दशहरा पर्व प्रेरणा देता है। वैसे इस पर्व के साथ अनेकों कथाएं जुड़ी हुई हैं। लेकिन मुख्यतः दुर्गा, जो शक्ति की अधिष्ठात्री देवी हैं, इसका इतिहास अधिक महत्त्व रखता है।

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कथा है कि ब्रह्माजी ने असुरों का सामना करने के लिए सभी देवताओं की थोड़ी-थोड़ी शक्ति संगृहीत करके मां दुर्गा अर्थात् संघशक्ति का निर्माण किया और उसके बल पर शुंभ-निशुंभ, मधुकैटभ, महिषासुर आदि राक्षसों का अंत हुआ। मां दुर्गा की अष्टभुजा का मतलब आठ प्रकार की शक्तियों से है। शरीर-बल, विद्याबल, चातुर्यबल, धनबल, शस्त्रबल, शौर्यबल, मनोबल और धर्म-बल इन आठ प्रकार की शक्तियों का सामूहिक नाम ही दुर्गा है। मां दुर्गा ने इन्हीं के सहारे बलवान राक्षसों पर विजय पायी थी।

समाज को हानि पहुंचाने वाली आसुरी शक्तियों का सामूहिक और दुष्ट व्यक्तियों का प्रतिरोध करने के लिए हमें संगठन शक्ति के साथ-साथ उक्त शक्तियों का अर्जन भी करना चाहिए। उक्त आठ शक्तियों से संपन्न समाज ही दुष्टताओं का अंत कर सकता है, समाज द्रोहियों को विनष्ट कर सकता है। दुराचारी षड्यंत्रकारियों का मुकाबला कर सकता है।

दशहरा का पर्व इन शक्तियों का अर्जन करने तथा शक्ति की उपासना करने का पर्व है। स्मरण रहे संसार में कमजोर, अशक्त व्यक्ति ही पाप-बुराई को प्रोत्साहन देते हैं। जहां इस तरह के व्यक्ति अधिक होंगे, वह समाज अस्त-व्यस्त एवं नष्ट-भ्रष्ट हो जाएगा। वहां असुरता, अशांति अन्याय का बोलबाला होगा ही।

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दशहरे पर भगवान राम द्वारा रावण पर विजय की कथा भी सर्वविदित है। व्यक्ति के अंदर परिवार एवं समाज में असुर प्रवृत्तियों की वृद्धि ही अनर्थ पैदा करती है। जिन कमजोरियों के कारण उन पर काबू पाने में असफलता मिलती है, उन्हें शक्ति साधना द्वारा समाप्त करने के लिए योजना बनाने- संकल्प प्रखर करने तथा तदुनसार क्रम अपनाने की प्रेरणा लेकर यह पर्व आता है। इसका उपयोग पूरी तत्परता एवं समझदारी से किया जाना चाहिए।