मीराबाई जयंती (Meerabai Jayanti)

भारत अपनी संस्कृति के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। भारतभूमि पर कई ऐसे संत और महात्मा हुए हैं जिन्होंने धर्म और भगवान को रोम में बसाया है और खुद को एक आदर्श के रूप में दूसरों के सामने पेश किया है। भारतीय संतों ने मोक्ष और शांति का मार्ग आसान बना दिया है। भजनों और स्तुतियों की रचना करके आम आदमी को भगवान के करीब लाया गया है। उसी तरह मीराबाई का स्थान संतों और महात्माओं में सबसे ऊंचा माना जाता है।मीरा बाई कृष्ण को अपना मानती थीं। जोधपुर के राठौर रतन सिंह की इकलौती बेटी मीराबाई का जन्म सोलहवीं शताब्दी में हुआ था। वह बचपन से ही कृष्ण भक्ति में डूबी रहीं।

कहा जाता है कि मीराबाई के कृष्ण प्रेम को देखकर और जनता की शर्म के कारण मीरा बाई के ससुराल वालों ने उन्हें मारने के लिए कई हथकंडे अपनाए लेकिन सब असफल रहे। परिवार के सदस्यों के इस व्यवहार से निराश होकर वह द्वारका और वृंदावन चली गई। मीराबाई जहां जाती थीं, उन्हें लोगों का सम्मान मिलता था। मीराबाई कृष्ण की भक्ति में इस कदर खो गईं कि उन्होंने नाच-गाना शुरू कर दिया।

कहा जाता है कि मीराबाई भगवान श्रीकृष्ण में लीन थीं। मीराबाई ने भक्ति को एक नया आयाम दिया है। एक ऐसी जगह जहां भगवान एक इंसान हैं। संसार के सारे लोभ उसके मोह से विचलित नहीं हो सकते। मीराबाई एक प्रसिद्ध राजा होने के बाद भी वैरागी बनी रहीं। मीराजी की कृष्ण के प्रति समर्पण एक अनूठी मिसाल है।

“मेरे तो गिरिधर गोपाल दुसरो ना कोई,
जाके सर मोर मुकुट मेरो पति सोइ

तात मात ब्रत बंधु आपनो ना कोई
चाँदी लाई कुल की कानी कह करलाई कोई

शंख चक्र गदा पद्मा कंडमाला सोयि
संतान ढिंग बेटी भती लोक लाज खोई

चुनरी के किनी ने अवध लिंही लोई लिया
मोती मूंगे उठार बनमाला पोई

असुवन जल सेन्ची सेवची प्रेम बेली बोई
अब तो बेल फेली आनंद फाल होई

दूध की मथानिया बड़े प्रेम से बिलोई
माखन जब खादिलियो चाचा पिये कोई

भक्त देख राजी हुई जगत देखी रॉय
दासी मीरा लाल गिरिधर तारो अब मोहि”