द्वारकाधीश मंदिर का इतिहास
भगवान कृष्ण ने द्वारका नगरी को आज से करीब 5000 साल पहले बसाया। इसलिए भक्त इसे तीर्थ नगरी मानते हैं। द्वारका नगरी आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित देश के 4 धामों में से एक है। साथ ही यह सप्तपुरी में से एक पुरी है। माना जाता है कि भगवान कृष्ण द्वारा बसाई गई द्वारका नगरी एक बार समु्द्र में समा चुकी थी और बाद में कालांतर में द्वारकाधीश मंदिर का फिर से निर्माण किया गया। भगवान कृष्ण को यहां पर रणछोड़ के नाम से भी पुकारा जाता है जरासंध और कालयवन को युद्ध भूमि में छोड़कर भगवान ने द्वारका में अपना साम्राज्य स्थापित किया था। कई वैज्ञानिक खोजों में कान्हा की बसाई द्वारका के अवशेष समुद्र में मिले हैं। कहते हैं उनके समय जो कृष्ण महल और मंदिर था वह समुद्र में समा गए थे।
द्वारकाधीश मंदिर का निर्माण किसने करवाया
द्वारकाधीश मंदिर का निर्माण भगवान कृष्ण के प्रपौत्र वज्रभान ने कराया था। फिर समय-समय पर इसका जीर्णोद्धार होता रहा। इस मंदिर से करीब 2 किलोमीटर की दूरी पर रुक्मिणी देवी का मंदिर है। ऋषि दुर्वासा के शाप के कारण उन्हें एकांत में रहना पड़ा था। इसी कारण से भगवान कृष्ण से कुछ दूर उनके मंदिर का निर्माण करवाया गया था।
मंदिर के बारे में खास बातें
यह मंदिर परकोटे से घिरा है, जिसमें चारों दिशाओं में द्वार हैं। इन द्वारों में उत्तर में स्थित मोक्ष द्वार और दक्षिण में स्थित स्वर्ग द्वार प्रमुख हैं। इस मंदिर की इमारत 7 मंजिला है और इसकी ऊंचाई 235 मीटर है। इसके शिखर पर करीब 84 फुट की बहुरंगी धर्मध्वजा लहराती रहती है। द्वारकाधीशजी के मंदिर पर लगा ध्वज दिन में 3 बार सुबह, दोपहर और शाम को बदला जाता है। मंदिर के गर्भगृह में चांदी के सिंहासन पर भगवान कृष्ण की श्यामवर्ण चतुर्भुजी मूर्ति विराजमान है। भगवान ने हाथों में शंख, चक्र, गदा और कमल धारण कर रखे हैं।
बेट द्वारका के दर्शन करना बेहद जरूरी
मान्यता है कि द्वारकाधीश के दर्शन तभी पूर्ण माने जाते हैं जब भक्त यहां से 4 किलोमीटर दूर स्थित बेट द्वारका मंदिर के दर्शन कर लेते हैं। यह स्थान द्वारका से करीब 4 किलोमीटर दूर समुद्र में स्थित है। मान्यता है कि यही वह स्थान है जहां भगवान हनुमान पहली बार अपने पुत्र मकरध्वज से मिले थे। इसलिए इसे बेट द्वारका कहा जाता है। कहते हैं इस मंदिर के दर्शन किए बिना द्वारका दर्शन अधूरे रहते हैं।