एक ने कहा, ‘आप हम लोगों के साथ ऐसा क्यों कर रहे हैं? आपका जीवन हम सबके लिए कीमती है। अब भी वक्त है। जेल के सारे सिपाही हमारे साथ हैं। हम सब आपको यहां से लेकर सुरक्षित जगह चले चलते हैं।’ सुकरात ने पहले रोते हुए शिष्यों को झिड़का, फिर अन्य शिष्यों से बोले ‘ तुम लोग इस मिट्टी की देह के लिए क्यों इतने परेशान हो? मेरे विचार तो हमेशा तुम्हारे साथ रहेंगे। इस देह के लिए मैं चोरों की तरह भाग जाऊं और छिपकर रहूं? मैंने इस जीवन का बहुत आनंद लिया, अब मैं मृत्यु का आनंद लेना चाहता हूं।’
सांझ ढलने को आ गई थी। जहर का प्याला लाया गया। जैसे लोग चाय-कॉफी लेते हैं, वैसे ही सुकरात ने जहर का प्याला उठाया और उसे खाली कर दिया। जहर पीकर वह लेट गए। शिष्यों ने पूछा, ‘प्रभो! बहुत पीड़ा हो रही होगी।’ सुकरात ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘शिष्यो! यह मेरे जीवन के जागरण का अवसर है। अब मैं हृदय, मन, विचार और शरीर से अलग हो गया हूं।’ अपने जीवन से ही नहीं, मौत से भी सुकरात मनुष्यता को अमर संदेश देते गए।
संकलन : ललित गर्ग