मैया मोरी मैं नहिं माखन खायो ।भोर भयो गैयन के पाछे,
मधुवन मोहिं पठायो ।
चार पहर बंसीबट भटक्यो,
साँझ परे घर आयो ॥
मधुवन मोहिं पठायो ।
चार पहर बंसीबट भटक्यो,
साँझ परे घर आयो ॥
मैं बालक बहिंयन को छोटो,
छींको किहि बिधि पायो ।
ग्वाल बाल सब बैर परे हैं,
बरबस मुख लपटायो ॥
तू जननी मन की अति भोरी,
इनके कहे पतिआयो ।
जिय तेरे कछु भेद उपजि है,
जानि परायो जायो ॥
यह लै अपनी लकुटि कमरिया,
बहुतहिं नाच नचायो ।
सूरदास तब बिहँसि जसोदा,
लै उर कंठ लगायो ॥
आरती कुंजबिहारी की | आओ भोग लगाओ प्यारे मोहन | श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊं | आरती श्री बाल कृष्ण जी की | ॐ जय जगदीश हरे | मधुराष्टकम्: धरं मधुरं वदनं मधुरं | कृष्ण भजन | अच्चुतम केशवं कृष्ण दामोदरं | श्री कृष्णा गोविन्द हरे मुरारी