युवतियों की चाहत की पूरी, फिर मिला पीने को पानी

अमीर खुसरो अपने समय के सुविख्यात कवि, शायर, भक्त एवं आध्यात्मिक व्यक्ति थे। वह उर्दू, फारसी के विद्वान थे और हिंदी, संस्कृत के अच्छे ज्ञाता भी थे। वह अपने इन्हीं गुणों के कारण बड़े-बड़े महाराजाओं, बादशाहों, सुल्तानों के दरबार में सम्मानित हो चुके थे। वह जितने रसूखदार थे, उतने ही सरल हृदय भी थे। सभी को सम्मान देते थे और सबसे सम्मान पाते थे। वह जिधर जाते, लोग उनके स्वागत में खड़े हो जाते थे। उनके गुणों की चर्चा चारों तरफ थी। बच्चा-बच्चा उनके बारे में जानता था।

एक बार की बात है, वह कहीं जा रहे थे। गर्मी का मौसम था। अमीर खुसरो को जोरों की प्यास लगी। प्यास से व्याकुल वह एक पनघट पर पहुंचे। वहां कुछ युवतियां, महिलाएं पानी भर रही थीं। वे सब आपस में हंसी-मजाक कर रही थीं। अमीर खुसरो को उन युवतियों ने दूर से ही पहचान लिया। मगर उनका व्यक्तित्व था ऐसा जो लोगों को आतंकित नहीं करता था, सहज बनाता था।

करीब आने पर उन्होंने पानी मांगा तो युवतियां कहने लगीं, ‘पहले कविता सुनाओ, फिर हम पानी पिलाएंगी।’ इस पर अमीर खुसरो ने कहा, ‘कविता सुनाऊंगा, पर पहले यह तो बताइए कि आप किस विषय पर कविता सुनना पसंद करेगीं?’ महिलाओं में अब कानाफूसी होने लगी। वे एकमत नहीं हो पा रही थीं। अब जिसके मन में जो आया उसने वही विषय बताना शुरू किया। जैसे एक ने कहा, ‘खीर पर कविता सुनाओ।’ दूसरी ने कहा, ‘चरखा पर सुनाओ।’ एक अन्य महिला बोली, ‘ढोल पर कविता सुनाओ।’

अमीर खुसरो शांत खड़े थे। उन सबकी मांग पर अलग-अलग कविता न सुनाकर सबकी मांगों को मिलाकर उन्होंने एक कविता सुनाई- खीर पकाई जतन से, चरखा दिया चलाय। आया कुत्ता खा गया, तू बैठी ढोल बजाय। महिलाएं कविता सुनकर अत्यंत प्रभावित हुईं और उन्होंने सम्मान से उन्हें पानी पिलाया। ऐसे थे आशु कवि अमीर खुसरो। संकलन : त्रिलोक चंद जैन