राजा की ऐसी महानता को देखकर यकीन नहीं करेंगे आप

विजय नगर के शासक राजा कृष्णदेव राय सदैव प्रजा की भलाई में ही निमग्न रहते थे। अपनी न्यायप्रियता व दयालुता के कारण वे बहुत ही लोकप्रिय थे। उनके राज्य में विद्वानों और साहित्यकारों का विशेष सम्मान था। एक बार राजा कृष्णदेव प्रजा का हाल-चाल जानने के लिए नगर में भ्रमण हेतु हाथी पर सवार होकर निकले। ऐसे अवसरों पर प्रजा उनके दर्शनों के लिए बाहर निकल पड़ती और जय-जयकार से आकाश गूंज उठता। इसी बीच जैसे ही राजा की सवारी मार्ग में थोड़ी आगे बढ़ी, सामने से उन्होंने राजकवि को पालकी में बैठकर आते हुए देखा।

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राजकवि की पालकी को चार व्यक्ति लेकर चल रहे थे। यह देखकर राजा कृष्णदेव तुरंत हाथी से नीचे उतरे और राजकवि की पालकी के पास पहुंचकर उसे रोक दिया। इससे पहले कि किसी को कुछ समझ में आता, राजा कृष्णदेव ने पालकी ले जा रहे चारों व्यक्तियों में से एक को हटा दिया और उसकी जगह स्वयं ही पालकी अपने कंधे पर लेकर चलने लगे। यह देखकर मार्ग में खड़े लोग आश्चर्य में पड़ गए। अचानक थमे शोर पर राज कवि को लग गया कि कहीं कुछ गड़बड़ जरूर हुई है।

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पालकी रुकवाकर राजकवि नीचे उतरे तो उन्होंने पालकी ढोते राजा को देखा। यह देखकर वे बोले, ‘राजन, यह आप क्या कर रहे हैं?’ राजा ने उत्तर दिया, ‘कविराज, आप एक महान कवि हैं, जबकि मैं तो एक साधारण राजा हूं, जिसका शासन कभी भी इधर-उधर हो सकता है। लेकिन आपके पास तो शब्दों का साम्राज्य है, जो कभी भी समाप्त नहीं हो सकता। हो सकता है कि इतिहास मुझे एक महान राजा के रूप में याद न रखे, किंतु इतिहास मुझे राजकवि की पालकी लेकर चलने वाले राजा के रूप में तो जरूर याद रखेगा।’ इसलिए मैं ऐसा शुभ खोना अवसर नहीं चाहता। यह सुनकर राजकवि भी राजा की महानता पर मुस्कुरा पड़े।

संकलन : रमेश जैन