महात्मा जिस रास्ते से गुजर रहे थे, उस पर एक विषधर सांप रहता था। सांप के डर से बच्चे उधर जाने से डरते थे। उन्होने जब महात्मा को उस तरफ जाते देखा, तो उन्हें मना किया। महात्मा नहीं माने और उसी रास्ते पर चल पड़े। बच्चे जिज्ञासावश देख रहे थे कि महात्मा के साथ कोई अनहोनी न हो जाए! लेकिन यह क्या! सांप दिखा तो महात्मा बोले, ‘ईश्वर के रचे प्राणियों को काटना अच्छा नहीं।’ सांप शांत हो गया। उसने महात्माजी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया। वह अपनी राह बढ़ गए। बच्चों ने देखा तो उन्हें लगा कि यह सांप बदल गया है। अब यह काटता नहीं है। उसके बाद वे सांप से छेड़छाड़ करने लगे। जब-तब उस पर पत्थर मारते। एक दिन डंडे से पीट-पीट कर उसे अधमरा कर दिया।
कुछ दिनों बाद महात्मा उधर से फिर गुजरे तो सांप का बुरा हाल देखकर चौंक उठे। कारण जानना चाहा। सांप ने पूरी आपबीती सुना दी। महात्मा ने कहा, ‘यह तो तुम्हारा पागलपन है। मैंने तुम्हें इतना कहा था कि भगवान के रचे प्राणियों को काटो मत। तुमने तो फुंफकारना भी छोड़ दिया।’ विवेकानंद की तरफ देखते हुए परमहंस ने कहा, ‘इसलिए बुराई को भयाक्रांत करके रोको। ध्यान रहे कि बुराई का सामना बुराई से करने की नौबत न आए।’– संकलन : हरिप्रसादराय