क्या है परिक्रमा का महत्व?
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, मंदिर में पूजा के बाद भगवान की परिक्रमा करने से ईश्वर की कृपा बनी रहती है और पुण्य फलों की प्राप्ति होती है। देवी-देवता प्रसन्न होते हैं और भक्तों के दुख-संकट दूर करते हैं। मंदिर में परिक्रमा हमेशा घड़ी की सुई की दिशा में लगाई जाती है, जिसे मंत्रों के उच्चारण के साथ लगभग 3 बार में पूरा किया जाता है, जब भक्त ऐसा करते हैं तो उनका दाहिना भाग गर्भगृह के अंदर देवता की ओर होता है। परिक्रमा करने से सकारात्मक ऊर्जा शरीर में प्रवेश करती है। इस ऊर्जा को जब आप घर लेकर जाते हैं तो घर से नकारात्मक ऊर्जा चली जाती है।
गर्भगृह का धार्मिक महत्व
हर मंदिर में गर्भगृह होता है, मंदिर का गर्भगृह मंदिर का ब्रह्म स्थान या हृदय स्थान होता है। गर्भगृह में मंदिर के देवी या देवता की मूल मर्ति स्थापित होती है। यह वही स्थान होता है, जहां देवी देवताओं को भोग, स्नान, विश्रान, पूजा आरती आदि चीजें की जाती हैं। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, गर्भगृह में जाने मात्र से ही व्यक्ति की पांचों ज्ञानेंद्रियां सक्रिय हो जाती हैं। गर्भगृह का ज्यादातर आकार आयताकार या चौकोर होता है। गर्भगृह के दर्शन के बाद भक्त गर्भगृह की परिक्रमा भी करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गर्भगृह की परिक्रमा करने के बाद सभी पीड़ाएं दूर हो जाती हैं और सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।
रामलला के लिए सावन मास बेहद खास
अयोध्या में रामलला के लिए यह पहला सावन का महीना है और इस दौरान भक्तों की संख्या में काफी इजाफा भी हुआ है। सावन मास में रामलला के लिए विशेष श्रृंगार किया गया है और 9 अगस्त से यानी नाग पंचमी से रामलला के गर्भगृह में झूलनोत्सव का कार्यक्रम भी होगा। अयोध्या में 7 अगस्त को यानी हरियाली तीज के दिन से मणि पर्वत पर झूलन महोत्सव शुरू हो जाएगा। यह पहली बार होने जा रहा है कि सावन मास में रामलला गर्भगृह में झूला झूलेंगे। तीसरे सोमवार पर उमड़े श्रद्धालु सावन मास में भक्त सरयू स्नान कर सिद्ध पीठ नागेश्वर नाथ पर जलाभिषेक करते हैं। प्रशासन ने सरयू के घाट से लेकर नागेश्वर नाथ मंदिर तक बैरिकेड लगाए थे हैं। शिव मंदिर के साथ ही श्रद्धालुओं ने रामलला के भी दर्शन किए।