पुत्र ने जवाब दिया, ‘पिताजी, मैं खाली हाथ नहीं लौटा हूं, बल्कि आज तो मैं अपने साथ अमर फल लेकर आया हूं।’ बेटे की बात सुनकर रामानुजम आश्चर्य से बोले, ‘बेटे, तुम्हें क्या हो गया है, तुम ऐसी अजीबो-गरीब बात क्यों कर रहे हो? यह अमर फल क्या होता है और यह दिख क्यों नहीं रहा है?’ बालक ने कहा, ‘पिताजी, मैं फल खरीदने बाजार गया, वहां अच्छी-अच्छी दुकानें सजी हुई थीं, मैं सोच ही रहा था कि फल कहां से खरीदूं, तभी मुझे एक वृद्ध महिला दिखी जो भूख से बेहाल थी। मुझसे देखा नहीं गया। मैंने उन रुपयों से उसको भोजन करा दिया। भोजन करने के बाद उस महिला ने मुझे ढेरों आशीर्वाद दिए। उससे मेरे मन को बहुत संतुष्टि और प्रसन्नता मिली। अब आप ही बताइए कि उस वृद्ध महिला का दिल से दिया गया आशीर्वाद क्या किसी अमर फल से कम है?’
जवाब सुनकर पिता ने पुत्र को गले से लगा लिया और कहा, ‘बेटा, तेरी करुणा की भावना ने मुझे हिला कर रख दिया है। निश्चित ही एक दिन तू महान व्यक्ति बनेगा।’ पिता की भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हुई। यही बालक आगे चलकर दक्षिण भारत के महान संत रंगनाथ के रूप में जाना गया।
संकलन : रमेश जैन