रोम-रोम में कुंभ की आस्था

नेहा अरोरा।। आस्था के इस महाकुंभ में हर व्यक्ति की यही इच्छा होती है कि वह मोक्ष की प्राप्ति कर ले। क्या बुजुर्ग, क्या जवान और क्या बच्चे। यह जोश हर किसी में दिखता है कि वह गंगा की गोद में डुबकियां लगाए और जी भरकर उसकी लहरों में खेले।

संगम तट पर यह उत्साह साफ दिखाई देता है, भयानक सर्दी के बावजूद हर इंसान चाहता है कि उसके बच्चे गंगा का स्पर्श जरूर करें। इसके पीछे उनकी मान्यता है कि पवित्र गंगाजल ना केवल हमारे पापों को नष्ट करता है बल्कि हमें मोक्ष की प्राप्ति भी कराता है। आज जहां तकनीकी और आधुनिकता युवा पीढ़ी के सिर चढ़कर बोल रही है वहीं आस्था के इस संगम में कई अनूठे दृश्य भी दिखाई देते हैं। यहां आई एक श्रद्घालु कविता सेठ कहती हैं, ‘हमें अपनी सभ्यता, संस्कार व आदर्श अपने बच्चों को विरासत में देने हैं। मुझे खुशी है कि इस कुंभ के जरिए मैं अपने बच्चों को भारतीय संस्कृति से रूबरू करा रही हूं।

कुंभ में शामिल होने आए एक युवा अंकुश अरोरा बताते हैं, ‘यह मेरा पहला कुंभ है। मुझे अपनी सभ्यता के बारे में बहुत कुछ जानने को मिला। गंगा मैया की गोद में यूं लगा जैसे मैं एक छोटे बच्चे की तरह बड़े से मैदान में खेल रहा हूं। इतनी बड़ी तादाद में आए लोगों को देखकर महसूस होता है कि मैं कितना खुशनसीब हूं कि इस महाकुंभ में शामिल हो सका।’

कुंभ का हिस्सा बनने के लिए विदेशी युवक-युवतियां भी बड़े उल्लास के साथ आए हैं। एंड्रू और एलिना दंपत्ति बोले, ‘हम हर बार कुंभ जरूर आते हैं। लेकिन इस बार का महाकुंभ हर बार से अलग है क्योंकि इस बार हमारे साथ हमारा 5 साल का बेटा लियॉन भी आया है। उसका उत्साह और खुशी तो देखने लायक है। उसने अपने दोस्तों की एक टोली बना ली है और हर पल का आनंद उठा रहा है। इस बार हम कुंभ में नाव बना रहे हैं और लियॉन उसमें हमारी मदद कर रहा है। यह ठंड भी लियॉन के उत्साह को कम नहीं कर पा रही है। इस तरह वह भी भारतीय संस्कृति को अच्छी तरह से जान पा रहा है।’

जब लियॉन से उसके उत्साह के बारे में पूछा गया तो बड़ी मासूमियत से उसने जवाब दिया, ‘मुझे इतने सारे लोगों को देखकर खुशी होती है। यह एक अलग अनुभव है। मुझे नाव बनाना अच्छा लगता है। मेरे दोस्तों ने मुझे डुबकी लगाना सिखाया है। हम हर दिन दोपहर में खेलने जाते हैं। यहां सादा खाना खाते हैं और देर तक सोते हैं। यहां बहुत सारे बाबा है जो साधना, तप और ज्ञान दे रहे हैं। यहां मन को काफी शांति मिलती है।’

तकनीकी की वजह से दुनिया बहुत छोटी हो गई है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स जैसे फेसबुक और ट्विटर ने आम जनता की राय को पलक झपकते ही पूरी दुनिया में फैलाने का बीड़ा उठाया है। राकेश कुमार एक स्टूडेंट हैं। वह कहते हैं, ‘यहां का नजारा काफी अलग है। हर दिन कुछ न कुछ होता रहता है। ज्ञान, भक्ति और आस्था के रंग में हर कोई डूबा है। कहीं साधुओं की मस्त टोली है तो कहीं विदेशी महिलाओं की भारतीय संस्कृति को सीखने की चाह। सुबह का माहौल तो सुहाना होता ही है, रात के अंधेरे को चीरते हुए गंगा की रेती पर लगे टेन्टों में टिमटिमाते बल्बों की रोशनी… इस तरह के कई दृश्यों को मैने कैमरे में कैद किया है और सोशल नेटवर्किंग साइट पर पोस्ट भी कर दिया है।’

इसी तरह की बात एक दूसरी स्टूडेंट ऋचा दुबे कहती हैं, ‘नगाड़ों की धुन मुझे हमेशा से प्रभावित करती हैं। इसी तरह दीपक लेकर गंगा की आरती उतारती महिलाएं एक अनूठा ही दृश्य प्रस्तुत करती हैं। अपने आपको गंगा के प्रति समपिर्त करके मैंने काफी हल्का महसूस किया। यह पर्व हमें हमारे इतिहास से अवगत कराता है और बताता है कि हमारी भारतीय संस्कृति कितनी समृद्घ है।’