वाणी पर संयम रखने का तरीका सीखें भगवान गणेश से

भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को पूरे देश में उमंग और उत्साह के साथ गणेशोत्सव मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन गणेशजी का आविर्भाव हुआ था। श्रीगणेशजी अनेक गुणों के साथ वाणी संयम में भी सिद्धि प्राप्त थे। आज जब हम कोरोना काल में उनकी आराधना करने जा रहे हैं, तो ऐसे समय में वाणी संयम के बारे जानेंगे।

कहते हैं कि महाभारत को व्यासजी ने कहा और गणेशजी ने लिखा। महाभारत का लेखन कार्य पूरा होने पर व्यासजी ने गणेशजी से कहा- मैनें चौबीस लाख शब्द बोले, पर उस समय आप सर्वथा मौन रहे। एक शब्द भी न कहा। गणेशजी ने कहा- वादरायण, सभी प्राणियों में सीमित प्राण शक्ति है। जो उसे संयमपूर्वक व्यय करते हैं वे ही उसका समुचित लाभ उठा पाते हैं। संयम ही समस्त सिद्धियों का आधार है और संयम की प्रथम सीढ़ी है- वाचोमुक्ति अर्थात् वाणी का संयम।

अपने मनोभाव, विचार, इच्छा आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति के लिए मनुष्य शब्द का आश्रय लेता है। शब्द वाणी और लिपि के माध्यम से व्यक्त होता है। जब मनुष्य अपने किन्हीं भावों को व्यक्त करना चाहता है तो उन्हें लिखकर अथवा बोलकर ही करता है। जहां तक बोलने की बात है यह वक्त और श्रोता के बीच विचार विनिमय का तत्कालिक है। लिपि के माध्यम से कही गई बात अधिक समय तक स्थायी रहने वाली होती है।

प्रयोग चाहे किसी भी रूप में हो मनुष्य के विचारों, भावों आदि की अभिव्यक्ति के लिए शब्द एक महत्वपूर्ण माध्यम है। मनुष्य ही नहीं इतर प्राणियों में भी अपनी भाषा, अपने शब्द होते हैं, जिनके माध्यम से वे परस्पर अपने भाव प्रकट करते हैं। एक बन्दर किसी विपत्ति में हो तो वह इस तरह चिल्लाता है कि उसे सुनकर दूसरे बन्दर एकत्र हो जाते हैं। इसी तरह चिड़ियाँ, कुत्ते, बिल्ली आदि अन्य प्राणी भी विशेष शब्दों के माध्यम से अपने मनोभावों को व्यक्त करते हैं।

बृहदारण्यकोपनिषद् में कहा गया है- सर्वेषां वेदानां वागेबायतन। वाक् ही ज्ञान का एकमात्र अधिष्ठान है। किन्तु जिस तरह कल्पवृक्ष के नीचे बैठकर मनुष्य महान् ऐश्वर्य का अधिकारी भी बन सकता है तो दुष्कल्पनाओं के द्वारा विनाश को भी प्राप्त हो सकता है, उसी तरह शब्द भी अपने अच्छे या बुरे परिणाम उपस्थित करता है। मनुष्य की वाणी अमृत भी है और विष भी। औषधि भी है और विषबाण भी। शब्दों का सदुपयोग करके अपना और समाज का बहुत बड़ा हित किया जा सकता है तो दुरुपयोग करके दूसरों को क्लेश हानि पहुंचाई जा सकती है। मनुष्यों के सभी व्यवहार वाणी द्वारा ही होते हैं। हमारे विचारों के आदान-प्रदान के लिए वाणी के सिवा कोई अन्य माध्यम नहीं। जो मनुष्य वाणी का व्यभिचार करता है, उसका दुरुपयोग करता है वह सब पूंजी की ही चोरी करता है।

-डॉ. प्रणव पण्ड्या (शांतिकुंज, हरिद्वार)