वायरस को खत्म करने से ज्यादा जरूरी है उसके डर को पहले मारा जाए

किसी भी समस्या से अधिक क्षति समस्या के भय और उसके प्रति भ्रम से है। जो किसी धीमे जहर की तरह हमें धीरे-धीरे नष्ट करने की क्षमता रखता है। आज एक विषाणु के कारण पूरा विश्व परेशान है। लेकिन वर्तमान में यह सबसे जरूरी है कि विषाणु के डर को पहले पराजित किया जाए। क्योंकि वाइरस आज नही तो कल चला ही जाएगा। पर यदि हमारे अंतर्मन में उसका खौफ और भ्रम स्थापित हो गया तो जिंदगी ज्यादा कठिन हो जाएगी।

डर का शरीर पर असर

एक प्रयोग किया गया था कभी। एक मृत्युंदण्ड प्राप्त व्यक्ति के लिए तय किया गया कि उसे फांसी की जगह विषधर नाग के दंश से मौत की सजा दी जाए। उसकी आंखों पर पट्टी बांध दी गयी पर उसे सर्पदंश की जगह साधारण सी पिन चुभा दी गयी। हैरानी की बात है कि उस व्यक्ति की मृत्यु हो गयी और उसकी देह में जहर भी पर्याप्त मात्रा में मिला। ये गरल उसकी देह में कहां से आया? उसके भीतर से। उसके अंदर से। उसके मस्तिष्क ने उसकी कामना पर उसके भीतर हलाहल का निर्माण कर दिया।

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मृत्यु ने नहीं इन्हें डर ने मारा

एक कथा है। एक फकीर को शहर के बाहर एक भयानक काली छाया नजर आयी। उसने पूछा कौन हो तुम। मौत हूं मैं, छाया ने उत्तर दिया। इतना विशाल रूप धर कर और इतना बड़ा पाश लेकर क्यों आई हो यहां फकीर ने प्रश्न किया। छाया बोली कि इस बार अधिक लोगों को ले जाना है, सौ से ज्यादा। और उस शहर में कई हजार लोगों की मृत्यु हो गयी। जब छाया लौटी तो फकीर नाराज हुआ तुम तो बड़ी झूठी निकली। सौ कहा और हजारों को बांध लिया अपने पाश में? छाया मुस्कुराई। उसने कहा कि मैंने तो सौ के ही प्राण हरे। शेष तो अपने आप भय से मर गए।

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बिना लड़े हराया श्रीकृष्ण ने

कृष्ण, बलराम और सात्यिकी लौट रहे थे कहीं से। समय का अनुमान गलत हो गया। तय हुआ कि जंगल में यहीं सरोवर के किनारे विश्राम कर लेते हैं। अभी पौ फटने में छः घंटे से अधिक का वक्त है। प्रत्येक व्यक्ति यदि दो-दो घंटे विश्राम कर ले तो रात आसानी से कट जाएगी। पहले सात्यिकी ने पहरा दिया। कुछ समय बाद एक राक्षस प्रकट हुआ। उसने सात्यिकी को भयभीत करने का प्रयास किया। सात्यिकी ने उसे ललकारा और भीषण युद्ध हुआ। सात्यिकी के छक्के छूट गए।

उन्होंने घबराकर बलदाऊ को उठाया और पहरा देने के किए कहकर, दुबक कर सो गए। राक्षस पुनः प्रकट हुआ। महावीर बलराम ने उसे पटखनी देने की कोशिश की तो जरूर पर मामला उलट गया। वो जितना बल पूर्वक प्रहार करते, वो राक्षस दोगुनी शक्ति से बलदाऊ पर हमला करता। बेचैन होकर बलराम ने श्रीकृष्ण को उठाया और उन्हें पहरे की जिम्मेदारी देकर सो गए। सुबह जब सूर्य की रोशनी प्रकट हुई तो बलराम और सात्यिकी ने प्रभात को प्रणाम किया। लेकिन श्री कृष्ण कहीं नजर नहीं आए।

दोनों ने बेचैन होकर उन्हें पुकारा तो सरोवर के किनारे से आवाज आयी। श्रीकृष्ण वहीं निश्चिंत होकर दातुन कर रहे थे। दोनों जन हैरान रह गए। एक दूसरे को देखा फिर धीरे से सात्यिकी ने पूछा कि वो आया था? श्रीकृष्ण ने सहज भाव से पूछा कौन? बलराम ने कहा कि राक्षस। श्रीकृष्ण ने कहा कि हां, आया तो था पर मैंने उस पर ध्यान नहीं दिया। जितना मैं उसे अनदेखा करता रहा, वो उतना कमजोर होता रहा। अंत में उसे भागना ही पड़ा। आज के इस कोरोना विषाणु को भी हमारा भय ही राशन-पानी दे रहा है। पर जैसे ही हमने उसे नजरअंदाज किया, ये विषाणु आहिस्ता-आहिस्ता हमारे जीवन से काफूर हो जाएगा।

उपाय जो सब ठीक कर सकता है

सुरक्षा, विश्वास और प्रार्थना ये ऐसे उपकरण हैं जिनसे हम इस विषाणु का आसानी से सामना कर सकते हैं। आप प्रभु का अंश हैं लिहाजा छोटे-मोटे परमात्मा तो हम सब हैं। अतएव अपनी शक्ति को जानें और पहचानें। याद रखें। आपकी उलटी सोच आपको और आपके इस जीवन को तहस-नहस कर सकती है। प्राणायाम नियमित रूप से करें। योग कहता है कि प्राणायाम आपके फेफड़ों को शक्ति प्रदान करता है।

आयुर्वेद में उपचार

इसी प्रकार आयुर्वेद के सूत्र कहते हैं कि तुलसी की पत्तियां, दालचीनी, अदरक, जीरा और अजवाइन का काढ़ा व संतरे, नारंगी व निंबू, गाजर, पालक, चुकंदर, टमाटर, फूलगोभी, खुबानी, जौ, भूरे चावल, शकरकंद, संतरा, पपीता, बादाम, दूध, दही, मशरूम, लौकी के बीज, तिल आदि का सेवन आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करता है। जिसकी व्यापक जानकारी आपको कोई भी आयुर्वेदाचार्य दे देगा।

कोरोना तो चला जाएगा लेकिन रह जाएगी बेचैनी

ज्योतिषीय गणनाओं के अनुसार 4 मई 2020 की शाम 7 बजकर 59 मिनट पर जब मंगल शनि की राशि मकर से जाएगा और कुंभ में आएगा, विश्व की नकारात्मकता में मामूली रूप से ही सही, सहसा कुछ कमी आएगी और मंगल के कुंभ से निकलते ही शुभ फलों में इजाफा शुरू हो जाएगा। और उसके बाद के तीन महीनों में परिस्थितियां बदल जाएंगी। लेकिन स्वघर का शनि लगभग पौने पांच साल तक पहले मकर और उसके बाद कुंभ में रहकर नाना प्रकार की कई विचित्र परिस्थितियों से जनमानस को बेचैन करेगा।

-सद्गुरु स्वामी आनंदजी