विलुप्त हो जाएगा बदरीनाथ धाम, फिर यहां होगी इनकी पूजा

ऐसी हैं धार्मिक मान्यताएं

जोशीमठ में भगवान नरसिंह की मूर्ति है, जिसका एक हाथ पतला होता जा रहा है। मान्यता है कि जिस दिन यह हाथ टूटकर गिर जाएगा, उस दिन नर नारयण पर्वत भी आपस में मिल जाएंगे और फिर बदरीनाथ जाने का मार्ग बंद हो जाएगा।

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फिर यहां होंगे बदरीनाथ के दर्शन

फिर यहां होंगे बदरीनाथ के दर्शन

नीति रोड पर तपोवन से करीब 4 किलोमीटर आगे सुभाई गांव के पास पहाड़ी पर एक छोटा-सा मंदिर स्थित है। इस मंदिर को भविष्य बदरी के नाम जाना जाता है। इस मंदिर में एक पत्थर रखा हुआ है जिस पर अस्पष्ट-सा एक प्रतिबिंब उभरा हुआ है। कहते हैं कि यही भविष्य बदरी हैं और बदरीनाथ की महिमा से उनका विग्रह धीरे-धीरे आकार ले रहा है।

और कौन-कौन से हैं बदरी

और कौन-कौन से हैं बदरी

भगवान बदरी के भी पंच केदार की तरह पंच बदरी में विग्रह हैं। इन पंच बदरी का संबंध अलग-अलग काल से है। आज जहां हम बदरीनाथ का पूजन करते हैं, उस धाम की स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में की थी। इसके अतिरिक्त ध्यान बदरी, वृद्ध बदरी, योगध्यान बदरी और भविष्य बदरी का महत्व है।

योगध्यान बदरी

योगध्यान बदरी

धार्मिक कथाओं के अनुसार, भगवान योगध्यान बदरी की मूर्ति को अर्जुन स्वर्ग से उस समय लेकर आए थे जब वह गंधर्व विद्या सीखकर स्वर्ग से धरती पर लौट रहे थे। अष्टधातु से निर्मित यह मूर्ति चित्त को आकर्षित करनेवाली है। योगध्यान बदरी उत्तरकाशी के पांडुकेश्वर नामक स्थान पर स्थित हैं। शीतकाल में जब भगवान नर-नारायण मंदिर के पट बंद हो जाते हैं, तब भगवान के विग्रह का पूजन यहीं किया जाता है।

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वृद्ध बदरी

वृद्ध बदरी

जोशीमठ मार्ग पर स्थित वृद्ध बदरी के मंदिर में प्रतिदिन पूजन-अर्चन होता है। धार्मिक कथा है कि एक बार जब नारद मुनि मृत्युलोक में भ्रमण कर रहे थे तो उनके मन में भगवान बदरीनाथ के दर्शन का विचार आया। जब वह चलते-चलते थक गए तो यहीं बैठकर भगवान विष्णु का ध्यान किया और उनसे दर्शन देने की विनय की। इस पर भगवान विष्णु ने एक बूढ़े के रूप में नारद जी को दर्शन दिए। तब यहां भगवान नारायण का वृद्ध रूप में विग्रह स्थापित कर उसका पूजन-वंदन शुरू किया गया।

ध्यान बदरी

ध्यान बदरी

ध्यान बदरी के विषय में धार्मिक कथा है कि एक बार ऋषि दुर्वासा के कारण देवराज इंद्र का राजपाठ छूट गया और वह दर-दर भटकने को मजबूर हो गए। तब इंद्रदेव ने इस स्थान पर कल्पवास किया और भगवान बदरीनाथ का ध्यान पूजन किया। इसके बाद भगवान की कृपा से उन्हें फिर से मान-सम्मान और राज्य की प्राप्ति हुई। तभी से इस स्थान पर ध्यान बदरी का पूजन और कल्पवास किया जाता है।

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