ईश्वर का वरदान है मां। शास्त्रों में वर्णित मां का विराट स्वरूप पर्याय है स्वयं उस महाचित्त आनंद का। ईश्वर स्वरूप प्रकृति ने जब सृजन किया मां का, तब उसे नवदुर्गा का रूप प्रदान किया। प्रकृति की संरचना मां और मां की कृति प्रकृति, परिणति हुई जिसकी मातृकृति में…
शब्दों की स्वर्ण मटर माला पिरोते हुए आशा के हृदय में प्रकृति के दिव्यत्व का शाश्वत भाव उत्पन्न होता है। मन में सहसा ही अनंत विचार किसी चलचित्र की भांति चलने लगते हैं। महान कवि विलियम वर्ड्सवर्थ की प्रकृति की अद्भुत व्याख्या का स्मरण हो चला। प्रकृति में परम सत्य है, प्रकृति मित्र, पथ-प्रदर्शक व दार्शनिक है। प्रकृति सदैव सृजन करती है, कभी विनाश नहीं। एक प्रसंग परमहंस योगानन्द की आत्मकृति ‘योगी कथामृत’ से मस्तिष्क में प्रकृति की श्रेष्ठता का भाव स्थिर कर जाता है। कितनी दिव्यता से प्रकृति की महिमा को प्रस्तुत किया है योगीजी ने। जब योगानन्द मातृ दर्शन के लिए मंदिर के प्रांगण में स्थिर चित्त से खड़े थे, उसी समय प्रचंड तपते वातावरण के बीच उन्हें अथाह शीतलता का अनुभव हृदय की गहराइयों तक होता है। समाधि भाव में व्योम रूपी चित्त मानो सागर के गहरे जल में समाहित हो गया। आशा ने मंद मुस्कुराहट के साथ प्रणाम किया मातृकृति को।
इन्हीं गूढ़ विचारों के मध्य एक रेखा सी खिंच गई। वर्ष 2020, एक पूर्ण संसार था जीवन के आशा का, शाश्वत संघर्ष, शाश्वत आशा और शाश्वत सत्य से परिपूर्ण। एक ऐसा समय था, जब किसी भी स्वप्न में विचरण करते हुए आशा और शाश्वत ने लेशमात्र न सोचा था कि विश्व हिमालय की भांति अडिग हो जाएगा। रेडियो पर चल रहे इंडियन आयडल वन के विजेता अभिजीत सावंत के मधुर गीत ‘थम जा जिंदगी’ ने मानो मूर्त रूप ले लिया था। मन अनिश्चितताओं के भर्म में इस प्रकार डूबता जा रहा था, जैसे किसी व्हेल मछली का घर ही कारागार बन गया हो।
अपने चरमोत्कर्ष के भी पायदान को पार करती सी प्रतीत हो रही तकनीकी, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी। ये कैसा जैविक हथियारों से युद्ध। अत्यंत संतप्त प्रकृति मानवता के कष्ट से। ये कैसा हाहाकार। विकास के तकनीकी अभासी मंच ने अनगिनत सोपानों में सफलता का परचम लहराने का दावा कर डाला। निश्छल धरती, निर्मल जल, अनंत व्योम के स्थान पर मनुष्य के हिस्से तनाव, असामंजस्यता का भाव आने लगा। मन उद्वेलित हो विलियम शेक्सपीयर जैसे प्रगतिशील नाटककार के उन उत्कृष्ट नाटकों के पात्रों का अध्ययन करने लगा, जो संपूर्ण होने के बाद भी किसी एक तुच्छ कमी के कारण जड़ता को प्राप्त हुए।
हम मानवों का कर्तव्य प्रकृति के लिए सदैव उच्चता की ओर अग्रसर रहने का संदेश सा प्राप्त हुआ। क्षण-भंगुर जीवन ने उसी क्षण जब शाश्वत वातावरण का अनुभव किया तो समझ आया कि खोज वाह्य संसार में निरर्थक है। दृष्टि तो आंतरिक प्रकृति में हो, प्रकृति की गूढ़ता से प्रेरित। ब्रह्माण्ड में अत्यंत सुंदर परिवर्तन दृष्टिगोचर होने लगे। असीमित ओज, पवित्रता, अथाह शांति। विभूषित सदैव जिससे होती प्रकृति।
एकलव्य सा संघर्ष पूरे विश्व में व्याप्त तो था, परंतु कहीं टूटन में जुड़ाव, धिक्कार में प्रेम, दूरी में साथ, अभाव में पूर्णता की ओर अग्रसर हो रही स्थिति थी। ये निरंतरता बनी रहे सदैव…विश्व पर्यावरण दिवस की हार्दिक बधाइयां।
डॉ. मेघना सिंह
सहायक आचार्य, राजकीय महाविद्यालय, हंसौर, बाराबंकी