बुद्ध ने सारिपुत्त को बुलाकर पूछा तो सारिपुत्त बोले, ‘मैंने इस भिक्षु पर कोई प्रहार नहीं किया है। भंते! मैं तो उस धरती के समान हूं जिस पर फूल गिरते हैं तो उसे खुशी नहीं होती, और गंदगी तथा कीचड़ गिरता है तो उससे भी उसे रंजिश नहीं होती। मैं तो पांव के पोंछे की तरह हूं, भिखारी की तरह हूं, बिना सींग के बैल की तरह हूं।’ सारिपुत्त की ऐसी बातें सुनकर उस भिक्षु को अंदर से ग्लानि होने लगी। वह तथागत के चरणों पर गिर गया और अपना दोष स्वीकारते हुए उनसे क्षमा याचना करने लगा। बुद्ध बोले, ‘सारिपुत्त! इस भिक्षु को क्षमा कर दें, वरना इसकी बड़ी बुरी दुर्गति होगी।’
अब सारिपुत्त घुटनों के बल बैठ गए और उस भिक्षु से कहा, ‘आयुष्मान! तुम्हारे अपराध के लिए मैं तुम्हें क्षमा करता हूं। अगर मैंने भी कोई अपराध किया है तो मुझे क्षमा कर दो।’ यह सुनकर सभी भिक्षु कहने लगे, ‘स्थविर सारिपुत्त की महानता तो देखो! ऐसे झूठे व्यक्ति पर क्रोध न करके स्वयं उससे भी क्षमा याचना कर रहे हैं।’ भिक्षुओं की सुगबुगाहट सुनकर महात्मा बुद्ध बोले, ‘जिसे सच्चा ज्ञान मिल गया है, उसका मन और वाणी तो शांत रहती ही है, उसके कर्म भी शांत होते हैं।’
संकलन : विनय मौर्य