संकलन: आर.डी.अग्रवाल ‘प्रेमी’
संत रमन्ना अपनी विनम्रता के लिए काफी प्रसिद्ध थे। लोगों का उनसे काफी लगाव था। संत रमन्ना के आश्रम में अनेक लोग अपनी समस्याओं के समाधान के लिए भी आते थे। एक दिन एक क्रोधी व्यक्ति आया और संत के पास शीघ्र पहुंचने के लिए जल्दी से अपने जूते उतारने लगा। जूते आसानी से नहीं उतरे, तो क्रोध में उसने किसी तरह पैर पटक कर उन्हें उतारा और तेजी से आश्रम के दरवाजे को धकेल कर संत के पास जा पहुंचा।
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आते ही उसने कहा, ‘बाबा, मैं आपसे अपनी समस्या का समाधान जानने आया हूं।’ संत बोले, ‘तुम्हारी समस्या का समाधान असंभव है।’ वह व्यक्ति आश्चर्य से बोला, ‘भला मेरी समस्या का समाधान क्यों नहीं होगा?’ संत ने कहा, ‘क्योंकि, तुम ठीक से व्यवहार करना ही नहीं जानते। जो विनम्र नहीं हो सकता, उसका सफल भी नहीं होता।’ व्यक्ति ने पूछा, ‘पर मेरे व्यवहार में क्या दोष है?’ यह सुनकर संत कुछ देर के लिए मौन हो गए और चारों ओर सन्नाटा पसर गया। फिर संत बोले, ‘कदम-कदम पर दोष है। तुम अकारण क्रोध में वस्तुओं को नुकसान पहुंचाते हो। तुमने अभी-अभी जूते और दरवाजे पर क्रोध किया। जाओ, उनसे माफी मांगो।’
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वह व्यक्ति हैरानी से बोला, ‘मैं बेजान चीजों से माफी क्यों मांगू?’ संत ने समझाते हुए कहा कि, ‘तुम बेजान वस्तु के साथ भी सही ढंग से बात नहीं कर सकते और चाहते हो कि ईश्वर और संसार तुम्हारे साथ उचित व्यवहार करें? यदि तुमने इन वस्तुओं को वास्तव में बेजान समझा होता, तो तुम इन पर क्रोध ही नहीं करते। विनम्रता से सारी समस्याओं के समाधान स्वयं हो जाते हैं।’ धीरे-धीरे वह व्यक्ति संत का आशय समझ गया। उसने जूतों सहित संत से भी माफी मांगी और हर किसी के साथ विनम्रता से पेश आने का भी वचन दिया।