सच है देवी पार्वती ने दिया पति भोलेनाथ के साथ विष्णु को भी शाप

तो इ‍सल‍िए देवी पार्वती को आया क्रोध

देवी पार्वती और भोले शंकर के प्रेम की अलग ही पराकाष्‍ठा है। यह उनके प्रेम का स्‍वरूप ही है क‍ि भोले के आधे अंग पर मां पार्वती व‍िराजती हैं और वह अर्धनारीश्वर महादेव कहलाते हैं। लेकिन एक बार कुछ ऐसा हुआ क‍ि देवी पार्वती ने भोलेनाथ को शाप दे द‍िया। हालांक‍ि उनके साथ उन्‍होंने अपने ज्‍येष्‍ठ पुत्र कार्तिकेय, भगवान व‍िष्‍णु और रावण को भी शाप द‍िया। आइए जानते हैं क्‍या है यह रहस्‍य?

द्युत क्रीड़ा से जुड़ा है यह रहस्‍य

द्युत क्रीड़ा से जुड़ा है यह रहस्‍य

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भोलेनाथ ने माता पार्वती के साथ द्युत क्रीड़ा (जुआ) खेलने की अभिलाषा प्रकट की। इसमें भगवान शंकर अपना सब कुछ हार गए। हारने के बाद भोलेनाथ ने अपनी अलग ही लीला रची। उन्‍होंने पत्‍ते से बनें वस्त्र पहने और गंगा तट पर पहुंच गए। यह बातें जब कार्तिकेय को पता चली तो वह माता पार्वती से समस्त वस्तुएं वापस लेने पहुंच गए।

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तब कार्तिकेय ने माता को हरा द‍िया

तब कार्तिकेय ने माता को हरा द‍िया

कार्तिकेयजी जब माता के पास पहुंचे और प‍िता की वस्‍तुएं मांगी तो माता ने उन्‍हें कहा क‍ि खेल में हारी वस्‍तुएं खेल में ही जीतनी होगी। इसके बाद खेल शुरू हुआ और इस बार खेल में पार्वती जी हार गईं तथा कार्तिकेय शंकरजी का सारा सामान लेकर वापस चले गए। इधर पार्वतीजी भी चिंतित हो गईं कि सारा सामान भी गया तथा पति भी दूर हो गए। पार्वतीजी ने अपनी व्यथा अपने प्रिय पुत्र गणेश को बताई। मां की पीड़ा सुन रहे गणेशजी इसका समाधान समझ चुके थे और स्वयं खेल खेलने भोलेनाथ के पास पहुंचे।

जब भोलेनाथ ने मना कर द‍िया लौटने से

जब भोलेनाथ ने मना कर द‍िया लौटने से

इस बार भोलेनाथजी के साथ गणेशजी खेल रहे थे। इसमें गणेश जी जीत गए। लौटकर उन्‍होंने अपनी जीत का समाचार माता को सुनाया। इस पर पार्वती बोलीं कि उन्हें अपने पिता को साथ लेकर आना चाहिए था। इसके बाद गणेशजी फिर भोलेनाथ की खोज में निकल पड़े। भोलेनाथ से उनकी भेंट हरिद्वार में हुई। उस समय भोलेनाथ भगवान विष्णु व कार्तिकेय के साथ भ्रमण कर रहे थे। पार्वती से नाराज भोलेनाथ ने लौटने से मना कर दिया। भोलेनाथ के भक्त रावण ने गणेशजी के वाहन मूषक को बिल्ली का रूप धारण करके डरा दिया। मूषक गणेश जी को छोड़कर भाग गए।

भगवान व‍िष्‍णु जब स्‍वयं बने खेल का पासा

भगवान व‍िष्‍णु जब स्‍वयं बने खेल का पासा

इधर भगवान विष्णु ने भोलेशंकर की इच्छा से पासा का रूप धारण कर लिया। गणेशजी ने माता के उदास होने की बात भोलेनाथ को कह सुनाई। इस पर भोलेनाथ बोले कि हमने नया पासा बनवाया है। अगर तुम्हारी माता पुन: खेल खेलने को सहमत हों तो मैं वापस चल सकता हूं। गणेशजी के आश्वासन पर भोलेनाथ माता पार्वती के पास पहुंचे और खेलने को कहा। इस पर माता पार्वती ने उनसे पूछा क‍ि अब उनके पास खेल में हारने के ल‍िए क्‍या है।

तब नारदजी ने सौंपी दी अपनी वीणा

तब नारदजी ने सौंपी दी अपनी वीणा

माता पार्वती की यह बात सुनकर भोलेनाथ चुप हो गए। इस पर नारदजी ने अपनी वीणा उन्हें सौंप दी। इस खेल में भोलेनाथ हर बार जीतने लगे। एक दो पासे फेंकने के बाद गणेशजी सारी बात समझ गए। उन्होंने पासे रूप में भगवान विष्‍णु का रहस्‍य माता पार्वती को बता द‍िया। यह सब सुनकर माता पार्वती को क्रोध आ गया। उसी समय रावण ने माता को समझाने का प्रयास किया। लेकिन उनका क्रोध शांत नहीं हुआ तथा क्रोधवश उन्होंने भोलेनाथ को शाप दे द‍िया।

माता पार्वती ने द‍िया यह शाप

माता पार्वती ने द‍िया यह शाप

कथा के अनुसार देवी पार्वती ने भोलेनाथ, को शाप द‍िया क‍ि उनके स‍िर पर सदैव गंगा की धारा का बोझ रहेगा। इसके बाद भगवान विष्णु को यह शाप द‍िया क‍ि यह रावण जो आज तुम्‍हारे साथ हर खेल में बराबर का साझीदार रहा। यही एक द‍िन तुम्‍हारा शत्रु होगा। फिर उन्‍होंने रावण को यह शाप द‍िया क‍ि ज‍िसकी आज उसने मदद की है वही व‍िष्‍णु एक द‍िन उसका अंत करेंगे। देवी पार्वती का क्रोध यहीं खत्‍म नहीं हुआ। उन्‍होंने अपने ज्‍येष्‍ठ पुत्र को कार्तिकेय को भी शाप द‍िया। उन्‍होंने कार्तिकेय को हमेशा ही बालरूप में रहने का शाप द‍िया।

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