सत्कर्मों में सदैव आस्था रखें – प्रेरक कहानी (Satkarm Me Sadeiv Astha Rakhen)

एक नदी के तट पर एक शिव मंदिर था, एक पंडितजी और एक चोर प्रतिदिन अपनी-अपनी आस्था के अनुरूप मंदिर आया करते थे। जहाँ पंडितजी फल फूल, दूध चंदन आदि से प्रतिदिन शिवजी की पूजा करते। वहीं वह चोर रोज भगवान को खरी-खोटी सुनाता और अपने भाग्य को कोसता रहिता।एक दिन पंडितजी और चोर एक साथ मंदिर से बाहर निकले। निकलते ही चोर को स्वर्णमुद्राओं से भरी एक थैली मिल गयी। जबकि ठीक उसी समय पंडितजी के पैर में एक कील घुस गई।

चोर स्वर्ण मुद्राओं से भरे थैले को पाकर अत्यंत प्रसन्न था। जबकि पंडितजी पीड़ा से परेशन थे, लेकिन पंडितजी को कील की पीड़ा से अधिक इस बात का कष्ट था कि मेरे पूजा पाठ करने के बाद भी बदले में भगवान ने मुझे कष्ट दिया। जबकि इस चोर के कुकर्मों के बदले में उसे स्वर्णमुद्राओं के रूप में पुरस्कार मिला।

तब मंदिर से आवाज आई- हे पंडित! आज तुम्हारे साथ एक बड़ी दुर्घटना होने वाली थी। लेकिन तुम्हारे सत्कर्मों के कारण तुम केवल कील लगने की पीड़ा पाकर ही मुक्त हो गए। जबकि इस चोर के भाग्य में आज अपार धन संपत्ति प्राप्ति का योग था। लेकिन अपने कुकर्मों के कारण उसे केवल कुछ मुद्राएँ ही मिली हैं।

अच्छे कर्म से ही मनुष्य का भविष्या एवं भाग्य बनता बिगड़ता है। इसलिए सदैव सत्कर्मों में आस्था बनाये रखना चाहिए।