संकलन: सतप्रकाश सनोठिया
सिकंदर की विश्व विजय यात्रा जारी थी। उसके मार्ग में आई उफनती नदी, दुर्गम पहाड़ और संकरी घाटियां उसके हौसले को हिला न सकीं। सभी अवरोधों को पार करती, मार-काट मचाती और लूटपाट करती उसकी सेना सभी भू-भाग जीतते हुए आगे बढ़ती जा रही थी। अंत में सिकंदर की सेना पर्शिया को जीतने के बाद भारत के उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में आ धमकी। भारत की प्राचीन संस्कृति और समृद्धि के बारे में सिकंदर ने बहुत कुछ सुन रखा था।
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भारत की सीमा में प्रवेश करने के थोड़ी ही देर बाद सिकंदर को एक साधु विशाल चट्टान पर लेटा हुआ मिला। सिकंदर की सेना उसकी जय जयकार करती हुई आगे बढ़ रही थी। साधु विश्राम अवस्था में यह सब देख रहा था। सिकंदर के समीप आने पर भी वह उसी प्रकार लेटा रहा। ऐसी विशाल सेना इतने पास से गुजर जाए और कोई इस कदर अविचलित रहे, यह सिकंदर को बड़ा विचित्र लगा। वह एकटक साधु को देखता रहा। अंत में उसने साधु से पूछा, ‘मुझे और मेरी सेना को देखकर क्या तुम्हें तनिक भी भय नहीं लगता? मैंने सारे जगत को जीत लिया है। मैं विशाल भू-भाग और धन-संपत्ति का स्वामी हूं।’
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साधु ने स्पष्ट शब्दों में निर्भीक होकर कहा, ‘एक लुटेरे से उसे भय लगेगा जिसे उससे कुछ छिन जाने की आशंका हो। किंतु तुम बड़ी संख्या में निरीह लोगों का वध करके इतनी धन-दौलत एकत्र करके क्या करोगे?’ सिकंदर ने उत्तर दिया, ‘पूरा जीवन सुख-सुविधा व निश्चिंतता से व्यतीत करूंगा।’ साधु बोला, ‘परंतु मैं तो बिना किसी का वध किए तथा बिना कुछ धन संचय किए अब भी विश्रांति से जीवन-यापन कर रहा हूं।’ साधु ने सिकंदर से विमुख होकर करवट ली और शांति की मुद्रा में आंखें बंद कर लीं। सिकंदर अवाक उसे देखता रह गया। भारत की संस्कृति से उसका प्रथम परिचय हो चुका था।