सिंकदर ने सेनापति को बना दिया सूबेदार, फिर हुआ गलती का अहसास

सिकंदर का सेनापति अपनी योग्यता और निष्ठा के लिए प्रसिद्ध था। वह हर मोर्चे पर सिकंदर को विजय दिलाता। लिहाजा सिकंदर उससे बहुत प्रसन्न रहता था। लेकिन एक बार सेनापति से कोई गलती हो गई जिससे सिकंदर काफी नाराज हुआ। उसने सेनापति पद से हटाकर उसे सूबेदार बना दिया। उस समय सूबेदार का पद सेना में सबसे छोटा होता था। सेनापति जरा भी दुखी नहीं हुआ। इस निर्णय को उसने सहजता से स्वीकार कर लिया और सूबेदार के रूप में पहले जैसी ही निष्ठा और समर्पण से काम करने लगा।

सिकंदर उसके कार्य और व्यवहार की सूचना लेता रहा। कुछ समय बाद सूबेदार को किसी काम से सिकंदर के सामने उपस्थित होना पड़ा। सिकंदर ने उससे पूछा- तुम सेनापति से सूबेदार हो गए, पर तुम्हें पहले की तरह खुश और उत्साहित देख रहा हूं। इसका क्या कारण है? सूबेदार ने कहा, ‘श्रीमान, मैं तो पहले से भी अधिक सुखी हूं। पहले तो सैनिक और सेना के छोटे अधिकारी मुझसे डरते थे, पर अब वे मुझसे स्नेह करते हैं और हर बात में मुझसे राय लेते हैं।’ सिकंदर ने प्रश्न किया- लेकिन बड़े पद से हटने पर तुम्हें अपमान महसूस नहीं हुआ? सूबेदार मुस्कुराया और बोला- मेरी दृष्टि में सम्मान पद में नहीं मानवीय व्यवहार में है। उच्च पद पाकर कोई अहंकार में डूब जाए और दूसरों को सताए, तो वह निंदनीय ही है। सम्मान तो ईमानदार होने, नम्र व्यवहार करने और कर्तव्यनिष्ठ रहने में ही है। जो ऐसा करता है वही सुखी और संतुष्ट रहता है।

यह कहकर सूबेदार ने सिकंदर से विदा ली। उस रात सिकंदर को नींद नहीं आई और वह सूबेदार के साथ अपने व्यवहार और उसके व्यवहार के बारे में सोचता रहा। अगले ही दिन उसने सूबेदार को बुलाया और अपने व्यवहार के लिए माफी मांगते हुए उसे फिर से सेनापति बना दिया। – संकलन : रमेश जैन