एक बार की बात है, एक साधु बाबा को भिक्षा में अमीर स्त्री ने जली रोटी दी और गरीब स्त्री ने जैसी रोटी वह खाती थी वैसी रोटी दी। कुछ वर्ष बाद गांव में बाढ़ आ गई, अमीर और गरीब दोनों का घर डूबने लगा, इसलिए वे दोनों, पहाड़ी पर स्थित एक साधु बाबा के आश्रम में आश्रय के लिए पहुंची। साधु बाबा दोनों को अपने आश्रम में ठहराते हैं, लेकिन खाने में उनको वही देते हैं जो उन्होंने उनको दिया था और कहा, ‘जो आप लोगों ने दिया वही आपको दे रहा हूँ।’ यानी अमीर स्त्री को उसकी जली कटी रोटी और गरीब स्त्री को उसकी दी हुई रोटी मिली।
इस पर अमीर महिला ने साधु महात्मा को खरी-खोटी सुनाते हुए कहा, ‘आप असली साधु नहीं हैं, जो भेदभाव करते हैं।’ इस पर साधु महात्मा ने बताया, ‘बेटा! सृष्टि का नियम है कि प्यार बांटोगे तो प्यार पाओगे, दूसरों को सुख दोगे, तो सुख मिलेगा और दुःख दोगे तो तुम्हारी झोली में दुःख ही आएगा।’ अगर आप दूसरों के साथ दया और प्रेम से पेश आते हैं, तो आपको भी दूसरों से दया और प्रेम मिलेगा। अगर आप दूसरों को दुख पहुंचाते हैं, तो किसी न किसी रूप में आपको भी दुख का सामना करना पड़ेगा।
यह सिद्धांत हमें सिखाता है कि हमें हमेशा सकारात्मक और नैतिक व्यवहार करना चाहिए, क्योंकि हमारे कर्म और व्यवहार का प्रभाव हमारी ही जिंदगी पर पड़ता है। हम जो भी कार्य या भावनाऐं दूसरों के प्रति व्यक्त करते हैं, वही अन्ततः हमें वापस मिलती है। आपने अक्सर सुना होगा, ‘जैसा बोएँगे, वैसा पाऐंगे’, ‘जैसी करनी वैसी भरनी’, इस प्रकार की सभी कहावत सत्य की कसौटी पर खरी उतरती हैं।