तांत्रिक ने पूछा कि तुम इतने वर्षों से इतनी संख्या में जप करते हो, साधना करते हो उससे तुम्हे कुछ अनुभूति हुई? उस लड़के ने कहा अनुभूति तो हुई नहीं। तांत्रिक ने कहा कि देखो तुम आदि जवान हो, हमारी तरह प्रेत सिद्ध कर लो, तुम्हारे सब काम प्रेत कर दिया करेगा, मै भी प्रेतों से सब काम करवाता कि और जीवन का आनंद लेता हूँ।
बालक ने तांत्रिक से साधन की विधि जानी और शीघ्र ही थोडे मंत्रो के जप से ही सिद्ध प्राप्ति कर ली। उसने विधि से तंत्रिक मंत्रो का जाप किया पर कुछ हुआ नहीं। उसने तांत्रिक से कहा कि मुझे तो कोई प्रेत सिद्ध हुआ नहीं। तांत्रिक ने कहा पुनः प्रयास करो। इस बार भी प्रेत प्रकट नहीं हुआ। तांत्रिक ने प्रेत को बुलाकर पूछा कि तुम इसके सामने क्यों नहीं प्रकट होते हो?
उस प्रेत ने कहा मैं तो जैसे ही इसके थोड़े निकट जाता हूँ, इसके पीछे एक सुदर्शन चक्र प्रकट हो जाता है। मैं महान बलवान होने पर भी उस चक्र के तेज के सामने टिक नही सकता। अवश्य ही कोई शक्ति इसकी रक्षा करती है।
इस घटना के कुछ समय पश्चात उसको बाबा की याद आयी। जब वह बाबा के पास आया तो बाबा बोले: बच्चा! तेरा पतन होने से साक्षात नाम भगवान ने सुदर्शन रूप से तुझे बचा लिया। नाम भगवान यदि तुझे नहीं बचाते तो हजारो वर्षो तक तू भी प्रेत योनि में कष्ट पाता फिरता। अतः नाम का प्रभाव प्रकट रूप से न दिखे तब भी नाम का प्रभाव होता ही है। नाम जपने वाले की रक्षा भगवान सदा ही करते हैं।
इस प्रसंग से शिक्षा मिलती है कि भक्त तंत्र भूत सिद्धियों के चक्कर मे ना पड़कर भगवान की ओर अपना ध्यान लगाए रखना चाहिए।