सोने जाओ तो भगवान विष्णु की तरह गुणातीत हो जाओ

यदि बिस्तर पर लेटना, तंद्रा, निद्रा और आलस्य से भरा होना है, तो क्या भगवान विष्णु जो एक मूर्ति में शेषनाग शैय्या पर लेटे हुए दिखाए जाते हैं वो हमेशा तंद्रा, निद्रा और आलस्य से भरे होते हैं ? यदि लेटना तम गुण के कारण होता तो क्या भगवान विष्णु हमेशा तम गुण के वश में होते हैं, ऐसा नहीं है, इसका गहरा अर्थ है कि शरीर भले किसी अवस्था में हो, लेकिन जब हम आत्मा में टिके होते हैं, तब प्रकृति के गुण हम पर कोई असर नहीं डाल पाते। इसी को गुणातीत अवस्था कहा जाता है। इस विषय में और भी विस्तार से जानिए लाइफ गुरु सुरक्षित गोस्वामी से…

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वैसे प्रकृति के नियम के अनुसार सत, रज और तम तीन गुण शरीर में रहकर अपना-अपना कार्य हमसे करवाते रहते हैं। सत गुण के बढ़ने पर मन में उर्ध्व गति, प्रार्थना, सेवा, ध्यान, सत्संग, एकाग्रता और शान्ति का संचार होता है। रज गुण के बढ़ने पर क्रिया या गति पैदा होती है और तम गुण के बढ़ने पर तंद्रा, निद्रा और आलस्य प्रकट हो जाता है। नींद, प्रकृति के नियम के अनुसार तम गुण के कारण होती है। असलियत में जब व्यक्ति देहाध्यास में रहता है, तब तीनों गुण उसको चलाते हैं, लेकिन जब व्यक्ति आत्मज्ञान के द्वारा आत्म भाव में आ जाता है, तब प्रकृति के ये तीनों गुण उस पर कार्य नहीं करते। अब वो गुणों से ऊपर उठ जाता है और अपनी आवश्यकता के अनुसार गुणों का संचालन करने लगता है।

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रात्रि में जब हम आत्मभाव में आकर सोने के लिए जाते हैं, उस समय हम तम गुण से बंधे नहीं होते, बल्कि वह समय समाधि का होता है। इसका प्रयोग आप रात को लेटने से पहले योग निद्रा करते हुए कर सकते हैं। उस समय शरीर, मन, बुद्धि से ऊपर उठकर अपने वास्तविक आत्म स्वरूप को अनुभव करते हुए सोने जाएं, तब वह नींद नहीं बल्कि समाधि कहलाएगी। इसलिए योगी कभी सोता नहीं, बल्कि सोते हुए भी समाधि में ही रहता है।

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