स्नान के बाद घूमिए इलाहाबाद

इलाहाबाद एक प्राचीन शहर है। कुंभ के मौके पर इलाहाबाद घूमने आए हैं तो इस शहर की बाकी मशहूर जगहों पर एक बार जरूर जाइए। कहा तो यह जाता है कि इलाहाबाद में साढ़े तीन करोड़ तीर्थ स्थल हैं। अब आप पूछेंगे कि कहां-कहां जाएं! आप की इस परेशानी को हल करने के लिए हम आपको कुछ जगहों की खासियत बताकर आपकी मुश्किल को कुछ हद तक आसान कर देते हैं।

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अकबर का किला संगम तट पर आपको दिखाई देगा एक किला जो बहुत कुछ लाल किले जैसा ही है। इसकी नींव 1583 में मुगल बादशाह अकबर ने रखी थी। एतिहासिक संदर्भों के अनुसार यह किला 983 बीघा जमीन पर बना है। इसे बनाने में उस समय 6,23,20,224 रूपए खर्च हुए थे। इतना विशाल किला बनने में लगभग 45 साल लगे थे। अबुलफजल ने अकबर की जीवनी अकबरनामा में बताया है कि यह किला चार हिस्सों में बंटा हुआ है। पहला खंड खुद बादशाह अकबर के रहने के लिए था, दूसरा बेगमों और शहजादों के लिए, तीसरा शाही कुटुंबियों और चौथा सिपाहियों और सेवकों के लिए था।

बाद में जब अंग्रेजों ने इस किले पर अधिकार कर लिया तो यह किला सैन्य छावनी के रूप में इस्तेमाल होने लगा। इसमें काफी फेरबदल किया गया, कुछ हिस्से गिरा दिए गए। इसकी मरम्मत 1838 में पूरी हुई।

अशोक स्तंभ किले के मुख्य दरवाजे के सामने सम्राट अशोक का प्रसिद्ध स्तंभ है जिस पर अशोक के समय की राजाज्ञाएं लिखवाई गई हैं। यह 35 फु ट लंबा पत्थर का एक खंभा है। नीचे इसकी गोलाई लगभग 3 फुट है जो ऊपर जाकर 2 फुट 2 इंच रह गई है। इसके ऊपर लिखे अभिलेख से पता चलता है कि इसे ईसा पूर्व 232 में सम्राट अशोक की आज्ञा से इसे कौशांबी में बनवाया गया था। मौजूदा जगह पर इसे 1838 में लगवाया गया है।
इस पर अशोक के छह लेख हैं जो उन्होंने अपनी प्रजा के हित के लिए लिखवाए थे। बाद में 5वीं शताब्दी में गुप्त राजा समुद्रगुप्त ने भी इस पर अपनी दक्षिण की विजय यात्रा का उल्लेख लिखवाया था। इसके अलावा इस पर मुगल बादशाह जहांगीर ने भी सिंहासन पर बैठने के क्रम में बादशाहों की सूचि और वंशावली लिखवाई है। अकबर के मशहूर दरबारी बीरबल ने भी इस पर हिंदी में 3 लाइनें लिखवाई हैं।

अक्षय वट अकबर के किले में ही प्रसिद्ध अक्षय वट भी है। कहा जाता है कि गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम की वजह से ही इस अक्षय वट की उत्पत्ति हुई है। इसका किसी भी काल में विनाश नहीं होता। अक्षय वट की महिमा से ही प्रभावित होकर मर्यादा पुरुषोत्तम रामचंद्र, लक्ष्मण और सीता जी वनवास के दौरान भारद्वाज मुनि के आश्रम से अक्षय वट के दर्शन करने आए थे। कहा जाता है कि इसके दर्शन के बाद ही संगम पर स्नान करने वालों के सभी संकल्प पूरे होते हैं। फिलहाल किले में भारतीय सेना का सैन्य भंडार है इसलिए यहां आमतौर पर श्रद्धालुओं को नहीं पहुंचने दिया जाता है लेकिन कुंभ 2013 के दौरान इसे सेना ने आम जनता के लिए खोलने की बात कही है।

पातालपुरी मंदिर किले में ही एक पातालपुरी मंदिर स्थित है। यह भी काफी प्राचीन है। इसमें सीढ़ियों से नीचे उतरना पड़ता है। इसमें गणेश, नरसिंह, शिवलिंग और गोरखनाथ समेत कई दिव्य प्रतिमाएं हैं। 1906 तक इस मंदिर के भीतर अंधेरा रहता था बाद में खिड़कियां बनाकर और अब बिजली के प्रकाश से श्रद्धालुओं को यहां के दर्शन कराए जाते हैं।

बड़े हनुमान जी या लेटे हनुमान जी का मंदिर संगम बांध के ठीक नीचे हनुमान जी की एक विशाल मूर्ति है। यह अपने आप में अनोखी इसलिए है क्योंकि इसमें हनुमान जी को लेटे हुए विश्राम की स्थिति में दिखाया गया है। ऐसी मान्यता है कि हर साल बारिश के समय में गंगा जी का जल किनारों को पार करते हुए इस मंदिर तक आता है और हनुमान जी के चरणों का स्पर्श करने के बाद बाढ़ का पानी आगे नहीं बढ़ता बल्कि वहीं से वापस लौटने लगता है।

शंकर विमान मंडपम् किले का पास ही दक्षिण शैली में बना 130 फुट ऊंचा शंकर विमान मंडपम् है। किंवदंती है कि आदि गुरू शंकराचार्य से प्रसिद्ध दर्शनशास्त्री कुमारिल भट्ट की मुलाकात यहीं हुई थी। इसी भेंट को अमर करने के लिए इस मंदिर को बनाया गया। इसके चार तल हैं।
अलोपी देवी मंदिर इलाहाबाद शहर में दारागंज मौहल्ले की ओर जाने वाली रोड़ पर अलोपी देवी का मंदिर है। इसका नाम देवी अलोपशंकरी के नाम पर रखा गया है। यहां किसी देवी की मूर्ति नहीं है। मंदिर के बीच में एक चबूतरा है जिसपर एक कुंड बना हुआ है। इसके ऊपर एक झूला है जो लाल कपड़े से ढका रहता है। ऐसी भी मान्यता है कि मां सती की कलाई इसी स्थान पर गिरी थी। यह प्रसिद्ध शक्ति पीठ है। यहां स्थित कुंड के जल को चमत्कारी शक्तियों वाला माना जाता है जिसके सेवन से दैहिक, दैविक समस्याओं से मुक्ति मिलती है।

भारद्वाज मुनि का आश्रम इलाहाबाद के मौहल्ले कर्नलगंज में ऋषि भारद्वाज का आश्रम है। यह आनंद भवन के पास ही है। कहा जाता है कि भगवान राम के समय में यहां भारद्वाज ऋषि का आश्रम था। वनवास को जाते समय भगवान राम ने यहीं विश्राम किया था। बाद में भरत भी उनसे मिलने यहीं आए थे। पुराने समय में जब वर्तमान संगम का बांध नहीं बना था तो गंगा यमुना का संगम यहीं हुआ करता था। मुख्य मंदिर के अलावा यहां कई और देवी देवताओं के मंदिर हैं।
आनंद भवन देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू के पैतृक निवास के रूप में आनंद भवन की ख्याति है। यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का साक्षी माना जाता है। इसमें संग्रहालय के अलावा नेहरू तारामंडल स्थित हैं। जवाहरलाल के पिता पं. मोतीलाल नेहरू ने 1930 में आनंद भवन को राष्ट्र को समर्पित कर दिया और इसका नाम स्वराज्य भवन रख दिया गया। 1946 तक यह अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी का हेडक्वॉर्टर रहा है।
मिंटो पार्क यमुना के तट पर बने मिंटो पार्क का भारत के उपनिवेशकालीन इतिहास में अपना स्थान है। यहां 1 नवंबर 1858 को तत्कालीन वायसराय लॉर्ड कैनिंग ने इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया का प्रसिद्ध घोषणापत्र पढ़कर सुनाया था। बाद में इसी जगह पर एक पत्थर की शिला पर इसके कुछ अंश लिखकर लगवाए गए। यहां एक पार्क बना जिसकी आधारशिला गवर्नर जनरल लॉर्ड मिंटो ने रखी थी। उन्हीं की याद में इसका नाम मिंटो पार्क रखा गया। आजादी के बाद इस ऐतिहासिक पार्क का नाम बदलकर महामना मदन मोहन मालवीय रख दिया गया।

चंद्रशेखर आजाद स्मारक सिविल लाइंस स्थित अल्फ्रेड पार्क में 27 फरवरी 1931 को मशहूर क्रांतिकारी अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद ब्रिटिश पुलिस के साथ हुए संघर्ष में शहीद हुए थे। आजादी के बाद से पार्क का नाम मोती लाल नेहरू पार्क रख दिया गया और जिस जगह आजाद शहीद हुए थे उस जगह उनका एक स्मारक बना दिया गया।

इलाहाबाद संग्रहालय यह म्यूजियम भी मोती लाल नेहरू पार्क में स्थित है। इसकी स्थापना 1931 में हुई थी। इसका पुरातत्व विभाग बड़ा समृद्ध है। इसमें कौशांबी और प्राचीन इलाहाबाद से जुटाई गई सामग्रियों को विशेष जगह दी गई है। कौशांबी के पाषाणकालीन मनके, खड़िया पत्थर की कलात्म्क वस्तुएं और सिक्के उल्लेखनीय हैं। कौशांबी में प्रागैतिहासिक कालीन वस्तुएं भी है, कुछ धातु के हथियार और हड़प्पा सभ्यता से मिली दुर्लभ वस्तुएं भी यहां पर संग्रहित हैं। इसके अलावा गुप्तकालीन मूर्तिकला के नमूने और पंद्रहवीं से लेकर आधुनिक समय तक की चित्रकला के बहुमूल्य उदाहरण यहां देखे जा सकते हैं। म्यूजियम में चंद्रशेखर आजाद की वह मूर्ति भी रखी है जो शहादत के समय उनके साथ थी।

खुसरो बाग मशहूर खुसरोबाग मुगलकालीन स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है। यहां मुगल सम्राट जहांगीर के बेटे खुसरो का मकबरा है। यह बाग 1605 में बना था। 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम में यह बाग स्वतंत्रता के लिए लड़ने वालों की गतिविधियों का केंद्र रहा था। यह इलाहाबादी अमरूदों के लिए भी मशहूर है।